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________________ पंचम वर्ग ] [103 को शरण देनेवाला कृष्ण अाज किस की शरण में जाये ? इसके उत्तर में बलराम कहने लगे-पाण्डवों की आपने सदा सहायता की है, उन्हीं के पास चलना ठीक है / उस समय पाण्डव हस्तिनापुर से निर्वासित होकर पाण्डुमथुरा में रह रहे थे। उनके निर्वासन की कथा ज्ञाताधर्मकथा से जान लेनी चाहिए। बलराम की बात सुनकर कृष्ण बोले-जिनको सहारा दिया हो, उनसे सहारा लेना लज्जास्पद है, फिर सुभद्रा (अर्जुन की पत्नी) अपनी बहिन है। बहिन के घर रहना भी शोभास्पद नहीं है। कृष्ण की तर्क-संगत बात सुनकर बलराम कहने लगे भाई ! कुन्ती तो अपनी बूया है, बूत्रा के घर जाने में अपमानजनक कोई बात नहीं / __ अन्त में कृष्ण की अनिच्छा होने पर भी बलराम कृष्ण को साथ लेकर दक्षिण समुद्र के तट पर वसी पांडवों की राजधानी पाण्डुमथुरा की ओर चल दिए / सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में जो "दाहिणबेलाए अभिमुहे पांडुमहुरं संपत्थिए” ये पद दिये हैं ये उक्त कथानक की ओर ही संकेत कर रहे हैं। “जराकुमारेणं" का अर्थ है जराकुमार ने। जराकुमार यादववंशीय एक राजकुमार था, जो महाराज श्रीकृष्ण का भाई था। भगवान् अरिष्टनेमि ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि जराकुमार के बाण से वासुदेव की मृत्यु होगी। यह जानकर जराकुमार को बड़ा दुःख हुअा / उसने निश्चय किया कि मैं द्वारका छोड़कर कोशाम्रवन में चला जाता हूं, वहीं जीवन के शेष क्षण व्यतीत कर दूंगा, इससे श्रीकृष्ण की मृत्यु का कारण बनने से बच जाऊंगा। अपने निश्चय के अनुसार वह कोशाम्रवन में रहने लगा था। पर भवितव्यता कौन टाल सकता था ! द्वारका के जल जाने पर श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम के साथ पाण्डुमथुरा जा रहे थे। रास्ते में कोशाम्रवन आया / महाराज श्रीकृष्ण को प्यास लगी, बलराम पानी लेने चले गये। पीछे श्रीकृष्ण एक वृक्ष के नीचे पीत वस्त्र प्रोढकर विश्राम करने लगे। उन्होंने एक पांव पर दसरा पांव रखा हा था। वासदेव के पांव में पद्म का चिह्न होता है। दूर से जैसे मृग की आँख चमकती है ठीक उसी प्रकार श्रीकृष्ण के पांव में पद्म-चिह्न चमक रहा था। उधर जराकुमार उसी वन में भ्रमण कर रहा था। उसे किसी शिकार की खोज थी। जब वह वट वृक्ष के निकट आया तो उसे दूर से ऐसा लगा जैसे कोई मृग बैठा है। उसने तत्काल धनुष पर बाण चढ़ाया, और छोड़ दिया। बाण लगते ही कृष्ण छटपटा उठे। उन्हें ध्यान पाया कि बाण कहीं जराकुमार का तो नहीं ? जराकुमार को सामने देखकर उनका विचार सत्य प्रमाणित हुआ / जराकुमार के क्षमा मांगने पर वे बोले जराकुमार ! तुम्हारा इसमें क्या दोष है ? भवितव्यता ही ऐसी थी। भगवान् अरिष्टनेमि की भविष्यवाणी अन्यथा कैसे हो सकती थी? बलराम के आने का समय निकट देखकर कृष्ण बोले-- जराकुमार ! तुम यहाँ से भाग जानो, अन्यथा बलराम के हाथों से तुम बच नहीं सकोगे / जिस अधम कार्य से जराकुमार बचना चाहता था, जिस पाप से बचने के लिए उसने द्वारका नगरी ड़कर कोशाम्रवन का वास अंगीकार किया था, उसी पाप को अपने हाथों से होते देखकर उसका हृदय रो पड़ा। पर क्या कर सकता था ? श्रीकृष्ण की वेदना उग्र हो गई, साथ ही उनकी शान्ति भंग हो गई। कहने लगे-मेरा घातक मेरे हाथों से बचकर निकल गया, मुझे तो उसे समाप्त कर ही देना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003476
Book TitleAgam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages249
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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