________________ 10-13 अज्झयणारिण तृतीय वर्ग की समाप्ति तृतीय वर्ग की समाप्ति ३२--एवं दुम्मुहे वि / कूवए वि / तिणि वि बलदेव-धारिणी-सया। दारुए वि एवं चेव, नवर- वस देव-धारिणी-सए। एवं-प्रणाहिट्ठी वि वस देव-धारिणी-सए। एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीर मं जाव' संपत्तणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स तेरसमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्त / इसी प्रकार दुर्मुख और कूपदारक कुमार का वर्णन जानना चाहिये / दोनों के पिता बलदेव और माता धारिणी थी। दारुक और अनाधृष्टि भी इसी प्रकार हैं। विशेष यह है कि वसुदेव पिता और धारिणी माता थी। श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा-“हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने पाठवें अंग अंतगडदशा सूत्र के तीसरे वर्ग के एक से लेकर तेरह अध्ययनों का यह भाव फरमाया है।" 1. देखिये-प्रथम वर्ग का द्वितीय सूत्र / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org