________________ नवमं अज्झयणं सुमुख जिज्ञासा और समाधान ३१--नवमस्स उक्खेवप्रो-[जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स बग्गस्स अटठमस्स अज्झयणस्स अयमटठे पणतं, नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पण्णत ?] ___ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरोए कण्हे नामं वासुदेवे राया जहा पढमए जाव' विहरइ। तत्थ बारवईए बलदेवे नाम राया होत्था-वण्ण प्रो। तस्स गं बलदेवस्स रण्णो धारिणो नामं देवो होत्था / वण्णो / तए णं सा धारिणो देवो सोहं सविणे जहा गोयमे, नवरं वोसं वासाई परियाप्रो। सेस तं चेव सेत्तुजे सिद्ध / / एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महाबीरेणं जाव' सपतणं अट्ठमस्स अंगस्त अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स नवमस्स अज्झयणस्स प्रयमठे पण्णत्त त्ति बेमि / भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने अन्तगडदशा सूत्र के तीसरे वर्ग के आठवें अध्ययन के जो भाव कहे वे मैंने आपसे सुने। भगवन् ! नवमें अध्ययन के भगवान् ने क्या भाव कहे हैं ? यह भी मुझे बताने की कृपा करें। श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा-'हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारकानामक नगरी थी, जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है। एक दिन भगवान् अरिष्टनेमि तोर्थंकर विचरते हुए उस नगरी में पधारे / वहाँ द्वारका नगरी में बलदेवनामक राजा था। यहाँ राजा का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार समझ लेना चाहिए। उस बलदेव राजा की धारिणी नाम की रानी थी। उसका वर्णन भी औपपातिक सूत्र के अनुसार जानना। उस धारिणी रानी ने सिंह का स्वप्न देखा, तदनन्तर पुत्रजन्म आदि का वर्णन गौतमकुमार की तरह जान लेना चाहिए। विशेषता यह कि वह बीस वर्ष की दीक्षापर्यायवाला हुआ / शेष उसी प्रकार यावत् शत्रुजय पर्वत पर सिद्धि प्राप्त की। "हे जंबू ! इस प्रकार यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावोर ने अलगड सूत्र के तृतीय वर्ग के नवम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है, ऐसा मैं कहता हूँ / " 1. देखिए-प्रथम वर्ग का सूत्र 6. 2. देखिए-प्रथम वर्ग का सूत्र 2. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org