________________ तृतीय वर्ग ] [87 हुअा-निश्चय ही कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमि के चरणों में वंदन करने के लिये गये हैं। भगवान् तो सर्वज्ञ हैं उनसे कोई बात छिपी नहीं है। भगवान् ने गजसुकुमाल की मृत्यु सम्बन्धी मेरे कुकृत्य को जान लिया होगा, (आद्योपान्त) पूंर्णत: विदित कर लिया होगा। यह सब भगवान् से स्पष्ट समझ सुन लिया होगा। अरिहंत अरिष्टनेमि ने अवश्यमेव कृष्ण वासुदेव को यह सब बता दिया होगा। तो ऐसी स्थिति में कृष्ण वासुदेव रुष्ट होकर मुझे न मालूम किस प्रकार की कुमौत से मारेंगे। इस विचार से डरा हुआ वह अपने घर से निकलता है, निकलकर द्वारका नगरी में प्रवेश करते हुए कृष्ण वासुदेव के एकदम सामने आ पड़ता है। विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि सोमिल ब्राह्मण श्रीकृष्ण से अपने जीवन को सुरक्षित रखने के विचार से द्वारका नगरी से वाहर भागा जा रहा था, परंतु अचानक श्रीकृष्ण भी उसी मार्ग से निकले और अचानक दोनों का सामना हो गया। इस सूत्र में प्रयुक्त "ठितिभेएणं" का अर्थ है---प्रायु की स्थिति का नाश / जिस प्रकार जल के संयोग से मिश्री या बताशा अपनी कठिनता को छोड़कर जल में विलीन हो जाता है तथा जैसे अग्नि का संपर्क पाकर घत पतला हो जाता है. उसी प्रकार सोपक्रम आयष्यकर्म भी अध्य निमित्त विशेष के मिलने पर क्षय को प्राप्त हो जाता है। अतः व्यवहार-नय के अनुसार संसारी जीवों के आयु-क्षय को अकाल मृत्यु के नाम से व्यवहृत किया जाता है / तं नायमेयं अरहया....... सिट्ठमेयं अरहया-इस पद में ज्ञात, विज्ञात, श्रत और शिष्ट ये चार पद हैं / सामान्य रूप से यह जानना कि गजसुकुमाल मुनि का प्राणान्त हो गया है, यह ज्ञात होना है। विशेष रूप से जानना कि सोमिल ब्राह्मण ने अमुक अभिप्राय से गजसुकुमाल मुनि का अग्नि द्वारा घात किया है, विज्ञात होना है / भाव यह है कि सामान्य बोध और विशेष बोध के संसूचक ज्ञात और विज्ञात ये दोनों शब्द हैं / सुयमेयं-के दो अर्थ होते हैं ---1. स्मृतमेतत् और 2. श्रु तमेतत् / प्राचार्य अभयदेव सूरि ने प्रथम अर्थ ग्रहण कर इसकी व्याख्या इस प्रकार की है—'स्मृतं पूर्वकाले ज्ञातं सत कथनावसरे स्मृतं भविष्यति'--इस व्याख्या से भाव यह होगा कि सोमिल ब्राह्मण ने विचार किया कि भगवान् अरिष्टनेमि ने गजसुकुमाल की मृत्यु-घटना को घटित होते समय ही स्वयं के ज्ञान से देख लिया होगा, और श्रीकृष्ण के आगमन पर उन्हें इसका स्मरण हुअा ही होगा। दूसरा थ त अर्थ लेने पर इसकी व्याख्या होगी-'श्रु तमेतद् अर्हता कस्मादपि देवविशेषाद्वा भगवता श्रुतं भविष्यति' अर्थात् सोमिल ब्राह्मण सोचता है-श्री कृष्ण वासुदेव ने मुनि गजसुकुमाल का मृत्यु-वृत्तान्त भगवान् द्वारा अथवा किसी देव विशेष द्वारा सुन लिया होगा / शिष्ट शब्द का अर्थ होता है--कह दिया। भाव यह है कि भगवान् अरिष्टनेमि ने वासुदेव कृष्ण को गजसुकुमाल की मृत्य का वृत्तान्त कह दिया होगा। सोमिल-शव की दुर्दशा २६-तए णं से सोमिले माहणे कण्हं वासुदेवं सहसा पासेत्ता भीए तत्थे तसिए उब्विग्गे संजायभए ठियए चेव ठिइभेएणं कालं कर इ, धरणितलंसि सव्वंगेहि “धस" ति सण्णिवडिए / तए णं से कण्हे वासुदेवे सोमिलं माहणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी __ "एस णं भो! देवाणुप्पिया! से सोमिले माहणे अपत्थिय-पत्थिए जाव' परिवज्जिए, जेणं 1. देखिए--इस वर्ग का सूत्र 22. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org