________________ 76 ] | अन्तकृद्दशा तत्पश्चात् अरिहंत अरिष्टनेमि ने गजसुकुमाल को स्वयं ही प्रव्रज्या प्रदान की और स्वयं ही यावत् आचार गोचर आदि धर्म की शिक्षा दी कि-हे देवानुप्रिय ! इस प्रकार-पृथ्वी पर युग मात्र दृष्टि रखकर चलना चाहिए, इस प्रकार-निर्जीव भूमि पर खड़ा होना चाहिए, इस प्रकारभूमि का प्रमार्जन करके बैठना चाहिए, इस प्रकार सामायिक का उच्चारण करके शरीर की प्रमार्जना करके शयन करना चाहिए, इस प्रकार-वेदना आदि के कारणों से निर्दोष आहार करना चाहिए, इस प्रकार-हित, मित और मधुर भाषण करना चाहिए / इस प्रकार अप्रमत्त एवं सावधान होकर प्राण (विकलेन्द्रिय) भूत (वनस्पतिकाय), जीव (पंचेन्द्रियों) और सत्त्व (शेष एकेन्द्रिय) की रक्षा करके संयम का पालन करना चाहिए। इस विषय में तनिक भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। तत्पश्चात गजसकमाल ने अरिष्टनेमि अर्हत के निकट इस प्रकार का धर्म सम्बन्धी यह उपदेश सनकर और हृदय में धारण करके सम्यक प्रकार से उसे अंगीकार किया। वह भगवान की प्राज्ञा के अनुसार गमन करते, उसी प्रकार बैठते, यावत् सावधान रहकर अर्थात् प्रमाद और निद्रा का त्याग करके प्राणों भूतों जीवों और सत्वों की यतना करके संयम की आराधना करने लगे] अनगार बनकर वे गजसुकुमाल मुनि ईर्यासमिति, [भाषा समिति, एषणासमिति, आदान-भाण्डमात्रनिक्षेपणसमिति और उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्ल-सिंघाण-परिस्थापनिकासमिति, एवं मनःसमिति, वचनसमिति, काय समिति का सावधानीपूर्वक पालन करने लगे। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति से रहने लगे / इन्द्रियों को वश में रखने वाले] गुप्तब्रह्मचारी बन कर एवं इसी निग्रंथप्रवचन को सन्मुख रख कर विचरने लगे। विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों में श्रीकृष्ण महाराज तथा राजकुमार गजसुकुमाल का भगवान् अरिष्टनेमि के चरणों में उपस्थित होना, भगवान् का मंगलमय उपदेश सुनकर चरमशरीरी गजसुकुमाल के हृदय में वैराग्य उत्पन्न होना, फिर दीक्षित होने के लिये माता-पिता से प्राज्ञा प्राप्त करना, कृष्ण महाराज द्वारा तथा माता देवकी द्वारा उन्हें दीक्षा न लेने के लिये समझाना (इस विषय में विस्तृत संवाद), गजसकुमाल को एक दिन के लिये राज्याभिषिक्त करना, प्रव्रज्याभिषेक महोत्सव और अन्त में अनगार बनकर यथाविधि विचरण आदि अनेक विषयों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है। ___'महेलियावज्ज'-इस पद के दो अर्थ किये जाते हैं / महिलारहित और अविवाहित / जिस का विवाह नहीं हया वह महिलावर्ज है। सरकार ने गजसकमाल के जीवन को कर मेघकुमार के समान बताया है / 'ज्ञाता धर्मकथांग सूत्र' के प्रथमाध्ययन में मेघकुमार को विवाहित कहा है और गजसुकुमाल अविवाहित थे, अत: सूत्रकार ने इस विभिन्नता को 'महेलियावज्ज' शब्द से सूचित किया है। ___ अभिषेक का अर्थ है--सर्व औषधियों से युक्त पवित्र जलद्वारा मन्त्रोपचारपूर्वक पदवी का आरोपण करने के लिये मस्तक पर जल छिड़कने की क्रिया- राज्याभिषेकक्रिया, राजगद्दी पर बैठने का महोत्सव, राजा का सिंहासनारोहण, राजतिलक / गजमुनि का महाप्रतिमा-वहन २१-तए णं से गयसुकुमाले जं चेव दिवसं पव्वइए तस्सेव दिवसस्स पुव्वावरण्हकालसमयंसि' 1. पाठान्तर-अंगसुत्तारिण-"पच्चावरण्ह०" 3/563 / कह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org