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________________ [उपासकदशांगसूत्र 38. तयाणंतरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्य वत्थुसाएण वा, तुबसाएण वा, सुत्थियसाएण वा, मंडुक्कियसाएण वा, अवसेसं सावविहिं पच्चक्खामि / तदनन्तर उसने शाकविधि का परिमाण किया बथुआ, लौकी, सुआपालक तथा भिडी-इन सागों के सिवाय और सब प्रकार के सागों का परित्याग करता हूं। 39. तयाणंतरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ एगेणं पालंगामहरएणं, अवसेसं माहुरयविहिं पच्चवखामि / / तत्पश्चात् उसने माधुरकविधि का परिमाण किया मैं पालंग माधुरक-शल्लकी [वृक्ष-विशेष] के गोंद से बनाए मधुर पेय के सिवाय अन्य सभी मधुर पेयों का परित्याग करता हूं।' 40. तयाणंतरं च णं जेमणविहिपरिमाणं करेइ / नन्नत्य सेहंबदालियंबेहि, अवसेसं जेमणविहिं पच्चक्खामि। उसके बाद उसने व्यंजनविधि का परिमाण किया__ मैं कांजी बड़े तथा खटाई पड़े मूग आदि की दाल के पकौड़ों के सिवाय सब प्रकार के व्यंजनों-चटकीले पदार्थों का परित्याग करता हूं। 41. तयाणंतरं च णं पाणियविहिपरिमाणं करेइ / नन्नत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं पाणियविहिं पच्चक्खामि / तत्पश्चात् उसने पीने के पानी का परिमाण किया मैं एक मात्र आकाश से गिरे--वर्षा के पानी के सिवाय अन्य सब प्रकार के पानी का परित्याग करता हूं। 42. तयाणंतरं च -णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्य पंच-सोगंधिएणं तंबोलेणं, अवसेसं मुहवासविहिं पच्चक्खामि / तत्पश्चात् उसने मुखवासविधि का परिमाण किया पांच सुगन्धित वस्तुओं से युक्त पान के सिवाय मैं मुख को सुगन्धित करने वाले बाकी सभी . पदार्थों का परित्याग करता हूं। विवेचन __ वृत्तिकार प्राचार्य अभयदेव सूरि ने पांच सुगन्धित वस्तुओं में इलायची, लौंग, कपूर, दालचीनी तथा जायफल का उल्लेख किया है / ऐसा प्रतीत होता है, समृद्ध जन पान में इनका प्रयोग करते रहे हैं / सुगन्धित होने के साथ साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ये लाभकर हैं / 1. परम्परागत-अर्थ की अपेक्षा से माधुरकविधि का अर्थ ·फल विधि है जिसमें फल के साथ मेवे भी गर्भित हैं और पालंग का अर्थ लताजनित ग्राम है। किन्हीं ने इसका अर्थ खिरणी (रायण-फल) भी किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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