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________________ 34] [उपासकदशांगसूत्र कलम जाति के धान के चावलों के सिवाय मैं और सभी प्रकार के चावलों का परित्याग करता हूं। विवेचन उत्तम जाति के बासमती चावलों का संभवतः कलम एक विशेष प्रकार है / आनन्द विदेहउत्तर बिहार का निवासी या / आज की तरह तब भी संभवतः वहाँ चावल ही मुख्य भोजन था। यही कारण है कि खाने के अनाजों के परिमाण के सन्दर्भ में केवल ओदनविधि का ही उल्लेख पाया है, जिसका आशय है विभिन्न चावलों में एक विशेष जाति के चावल का अपवाद रखते हुए अन्यों का परित्याग करना / इससे यह अनुमान होता है कि तब वहाँ गेहूँ आदि का खाने में प्रचलन नहीं था या बहुत ही कम था। 36. तयाणंतरं च णं सूवविहिपरिमाणं करेइ / नन्नत्य कलायसूवेण वा, मुग्ग-माससूवेण वा, अवसेसं सूवविहिं पच्चक्खामि / तत्पश्चात् उसने सूपविधि का परिमाण--दाल के प्रयोग का सीमाकरण कियामटर, मूग और उडद की दाल के सिवाय मैं सभी दालों का परित्याग करता हूँ। 37. तयाणंतरं च णं घयविहिपरिमाणं करेइ। नन्नत्थ सारइएणं गोघयमंडेणं. अवसेसं धविहिं पच्चक्खामि / उसके बाद उसने घृतविधि का परिमाण किया--- शरद् ऋतु के उत्तम गो-घृत के सिवाय मैं सभी प्रकार के घृत का परित्याग करता हूं। विवेचन ___ अानन्द ने खाद्य, पेय, भोग्य, उपभोग्य तथा सेव्य-जिन-जिन वस्तुओं का अपवाद रखा, अर्थात् अपने उपयोग के लिए जिन वस्तुओं को स्वीकार किया, उन-उन वर्णनों को देखने से प्रतीत होता है कि उपादेयता, उत्तमता, प्रियता आदि की दृष्टि से उसने बहुत विज्ञता से काम लिया / अत्यन्त उपयोगी, स्वास्थ्य-वर्द्धक, हितावह एवं रुचि-परिष्कारक पदार्थ उसने भोगोपभोग में रखे / प्रस्तुत सूत्र के अनुसार प्रानन्द ने घृतों में केवल शरद् ऋतु के गो-घत सेवन का अपवाद रखा / इस सन्दर्भ में एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या प्रानन्द वर्ष भर शरद-ऋतु के ही गो-धृत का सेवन करता था ? उसने ताजे घी का अपवाद क्यों नहीं रखा? , वास्तव में बात यह है, रस-पोषण की दृष्टि से शरद् ऋतु का छहों ऋतुओं में असाधारण महत्त्व है / आयुर्वेद के अनुसार शरद् ऋतु में चन्द्रमा की किरणों से अमृत [जीवनरस] टपकता है। इसमें अतिरंजन नहीं है / शरद् ऋतु वह समय है, जो वर्षा और शीत का मध्यवर्ती है / इस ऋतु में वनौषधियों [जड़ी-बूटियों में, बनस्पतियों में, वृक्षों में, पौधों में, घास-पात में एक विशेष रस-संचार होता है। इसमें फलने वाली वनस्पतियां शक्ति-वर्द्धक, उपयोगी एवं स्वादिष्ट होती हैं / शरद् ऋतु का गो-घृत स्वीकार करने के पीछे बहुत संभव है, आनन्द की यही भावना रही हो / इस समय का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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