________________ संपर्क 12] [उपासकदशांगसूत्र विवेचन . यहां प्रयुक्त 'तलवर' आदि शब्द उस समय के विशिष्ट जनों के रूप को प्रकट करते हैं। यह विशेषता विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित थी / आर्थिक, व्यापारिक, शासनिक, व्यावहारिक तथा लोक सभी विशेषताओं का संकेत इन शब्दों में प्राप्त होता है, जिनका उस समय के समाज में महत्त्व और आदर था / आनन्द के व्यापक, प्रभावशाली और आदरणीय व्यक्तित्व का इस प्रसंग से स्पष्ट परिचय प्राप्त होता है / वह इतना उदार, गंभीर और ऊंचे विचारों का व्यक्ति था कि सभी प्रकार के विशिष्ट जन अपने कार्यों में उसे पूछना, उससे सलाह लेना उपयागी मानते थे। - इस प्रसंग में एक दूसरी महत्त्व की बात यह है, जो आनन्द के पारिवारिक जीवन की एकता, पारस्परिक निष्ठा और मेल पर प्रकाश डालती है / आनन्द सारे परिवार का केन्द्र-बिन्दु था तथा परिवार के विकास और संवर्धन में तत्पर रहता था। आनन्द के लिए मेढि की उपमा यहां काफी महत्त्वपूर्ण है / मेढि उस काष्ठ-दंड को कहा जाता है, जिसे खलिहान के बीचोंबीच गाड़ कर, जिससे बांधकर बैलों को अनाज निकालने के लिए चारों ओर धुमाया जाता है। उसके सहारे बैल गतिशील रहते हैं / परिवार में यही स्थिति आनन्द की थी। शिवनन्दा 6. तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स सिवानंदा नामं भारिया होत्था, अहीण-जाव (पडिपण्ण-पंचिदिय-सरीरा. लक्खण-बंजण-गणोववेया, माणम्माणप्पमाण-पडिपुण्ण-सजाय-सव्वंगसुंदरंगी, ससि-सोमाकार-कंत-पिय-दसणा) सुरुवा / आणंदस्स गाहावइस्स इट्ठा, आणंदेणं गाहावइणा सद्धि अणुरत्ता, अविरत्ता, इठे जाव (सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे) पंचविहे माणुस्सए काम-भोए पच्चणुभवमाणी विहरइ। आनन्द गाथापति की शिवनन्दा नामक पत्नी थी, [उसके शरीर की पांचों इन्द्रियां अहीनप्रतिपूर्ण-रचना की दृष्टि से अखंडित, सम्पूर्ण, अपने-अपने विषयों में सक्षम थीं, वह उत्तम लक्षण--- सौभाग्यसूचक हाथ की रेखाएं आदि, व्यंजन-उत्कर्षसूचक तिल, मसा आदि चिह्न तथा गुण-शील, सदाचार, पातिव्रत्य आदि से युक्त थी / दैहिक फैलाव, वजन, ऊंचाई, आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरी थी। उसका आकार-स्वरूप चन्द्र के समान सौम्य तथा दर्शन कमनीय था] / ऐसी वह रूपवती थी। प्रानन्द गाथापति की वह इष्ट—प्रिय थी। वह अानन्द गाथापति के प्रति अनुरक्त-अनुरागयुक्त-अत्यन्त स्नेहशील थी। पति के प्रतिकूल होने पर भी वह कभी विरक्त-अनुरागशून्य-रुष्ट नहीं होती थी। वह अपने पति के साथ इष्ट-प्रिय [शब्द, स्पर्श, रस, रूप तथा गन्धमूलक] पांच प्रकार के सांसारिक काम-भोग भोगती हुई रहती थी। विवेचन प्रस्तुत प्रसंग में नारी के उस प्रशस्त स्वरूप का संक्षेप में बड़ा सुन्दर चित्रण है, जिसमें सौन्दर्य और शील दोनों का समावेश है / इसी में नारी की परिपूर्णता है। यहां प्रयुक्त 'अविरक्त' विशेषण पति के प्रति पत्नी के समर्पण-भाव तथा नारी के उदात्त व्यक्तित्व का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org