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________________ पहला अध्ययन : आनन्द गाथापति] [11 इस प्रसंग से ऐसा प्रकट होता है कि खेती तथा गो-पालन का कार्य तब बहुत उत्तम माना जाता था / समृद्ध गृहस्थ इसे रुचिपूर्वक अपनाते थे। वैभव 4. तस्स णं आणंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ बुद्धि-पउत्ताओ; चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ पवित्थर-पउत्ताओ, चत्तारि वया, दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। __ आनन्द गाथापति का चार करोड़ स्वर्ण खजाने में रक्खा था, चार करोड़ स्वर्ण व्यापार में लगा था, चार करोड़ स्वर्ण घर के वैभव-धन, धान्य, द्विपद, चतुष्पद आदि साधन-सामग्री में लगा था / उसके चार व्रज-गोकुल थे / प्रत्येक गोकुल में दस हजार गायें थीं। विवेचन यहां प्रयुक्त हिरण्ण [हिरण्य-स्वर्ण का अभिप्राय उन सोने के सिक्कों से है, जो उस समय प्रचलित रहे हों / सोने के सिक्कों का प्रचलन इस देश में बहुत पुराने समय से चला आ रहा है / भगवान महावीर के समय के पश्चात् भी भारत में सोने के सिक्के चलते रहे। विदेशी शासकों ने भारत में जो सोने का सिक्का चलाया उसे दीनार कहा जाता था / संस्कृत भाषा में 'दीनार' शब्द ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया गया / मुसलमान बादशाहों के शासन-काल में जो सोने का सिक्का चला, वह मोहर या अशरफी कहा जाता था। उसके बाद भारत में सोने के सिक्कों का प्रचलन बन्द हो गया। सामाजिक प्रतिष्ठा 5. से णं आणंदे गाहावई बहूणं राईसर-जाव (तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेट्ठिसेणावह) सत्यवाहाणं बहुसु कज्जेसु य कारणेसु य मंतेसु य कुडुबेसु य गुज्झसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी, पमाणं, आहारे, आलंबणं, चक्खू, मेढीभूए जाव (पमाणभूए, आहारभूए, आलंबणभूए, चक्षुभूए) सव्व-कज्जवड्ढावए यावि होत्था। आनन्द गाथापति बहुत से राजा-मांडलिक नरपति, ईश्वर-ऐश्वर्यशाली एवं प्रभावशील पुरुष [तलवर--राज-सम्मानित विशिष्ट नागरिक, मांडविक या माडंबिक-जागीरदार भूस्वामी कौटुम्बिक-बड़े परिवारों के प्रमुख, इभ्य-वैभवशाली, श्रेष्ठी सम्पत्ति और सुव्यवहार से प्रतिष्ठाप्राप्त सेठ, सेनापति] तथा सार्थवाह-अनेक छोटे व्यापारियों को साथ लिए देशान्तर में व्यवसाय करने वाले समर्थ व्यापारी-इन सबके अनेक कार्यों में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, एकान्त में विचारणीय-सार्वजनिक रूप में अप्रकटनीय विषयों में, किए गए निर्णयों में तथा परस्पर के व्यवहारों में पूछने योग्य एवं सलाह लेने योग्य व्यक्ति था। वह सारे परिवार का मेढि-मुख्य-केन्द्र, प्रमाण स्थिति-स्थापक-प्रतीक, प्राधार, आलंबन, चक्षु-मार्गदर्शक, मेढिभूत [प्रमाणभूत, आधारभूत, आलंबनभूत चक्षुभूत] तथा सर्व-कार्य-वर्धापक-सब प्रकार के कार्यों को आगे बढ़ाने वाला था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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