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________________ पहला अध्ययन : आनन्द गाथापति]. [13 कोल्लाक सन्निवेश 7. तस्स णं वाणियगामस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसी-भाए एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्था / रिद्ध-स्थिमिय जाव (समिद्धे, पमुइय-जण-जाणवये, आइण्ण-जण-मणुस्से, हलसय-सहस्स-संकिट्ठ-विकिट्ठ-लट्ठ-पण्णत्त-सेउसीमे, कुक्कुड-संडेय-गाम-पउरे, उच्छु-जव-सालि-कलिये, गो-महिस-गवेलग-प्पभूये, आयारवन्त-चेइय-जुवइ-विविह-सणिविट्ठ-बहुले, उक्कोडिय-गाय-गंठिभेय-भड-तक्कर-खंडरक्खरहिये, खेमे, णिरुबद्दवे, सुभिक्खे, वीसत्थसुहावासे, अणेग-कोडि-कुडुंबियाइण्णणिव्वुय-सुहे, नड-नट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबय-कहग-पवग--लासग-आइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्लतुबवोणिय-अणेग-तालायराणुचरिये, आरामुज्जाण-अगड-तलाग-दीहिय-वप्पिणि-गुणोववेये, नंदणवणसन्निभ-प्पगासे, उम्विद्ध-विउल-गंभीर-खाय-फलिहे, चक्क-गय-भुसुदि-ओरोह-सग्धि-जमल-कवाडघण-दुप्पवेसे, धणु-कुडिल-वंक-पागार-परिविखत्ते, कविसीसय वट्ट-रइय-संठिय-विरायमाणे, अट्टालयचरिय-दार-गोपुर-तोरण-उष्णय-सुविभत्त-रायमग्गे, छेयायरिय-रइय-दढ-फलिह-इंदकोले, विणिवणिच्छेत्त-सिप्पियाइण्ण-निव्वुयसुहे, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-पणियावण-विविह-वत्थु-परिमंडिये, सुरम्मे, नरवइ-पविइण्ण-महिवइ-पहे, अणेगवर-तुरग-मत्तकुजर-रह-पहकर-सीय-संदमाणीयाइण्णजाण-जुग्गे, विमउल-णवणलिणिसोभियजले, पंडुरवरभवण-सण्णिमहिये उत्ताणणयणपेच्छणिज्जे,) पासादीए, दरिसणिज्जे, अभिरूवे, पडिरूवे। वाणिज्यग्राम के बाहर उत्तर-पूर्व दिशाभाग--ईशान कोण में कोल्लाकनामक सन्निवेश-- उपनगर था / वह वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध था / वहां के नागरिक और जनपद के अन्य भागों से पाए व्यक्ति वहां आमोद-प्रमोद के प्रचुर साधन होने से प्रमुदित रहते थे, लोगों की वहां घनी आबादी थी, सैकड़ों, हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भूमि सहजतया सुन्दर मार्ग-सीमा सी लगती थी, वहां मर्गों और यवा सांडों के बहुत से समह थे. उसके आसपास की भमि 1, जौ और धान के पौधों से लहलहाती थी, वहां गायों, भैसों और भेड़ों की प्रचुरता थी, वहां सुन्दर शिल्पकला युक्त चैत्यों और युवतियों के विविध सन्निवेशों-पण्य तरुणियों के पाड़ों--टोलों का बाहुल्य था, वह रिश्वतखोरों, गिरहकटों, बटमारों, चोरों, खंड-रक्षकों—चुगी वसूल करनेवालों से रहित, सुखशान्तिमय एवं उपद्रवशून्य था, वहां भिक्षुकों को भिक्षा सूखपूर्वक प्राप्त होती थी, इसलिए वहां निवास करने में सब सुख मानते थे, आश्वस्त थे / अनेक श्रेणी के कौटुम्बिक-पारिवारिक लोगों की घनी बस्ती होते हुए भी वह शान्तिमय था, नट-नाटक दिखाने वाले, नर्तक-नाचने वाले, जल्ल–कलाबाज-रस्सी आदि पर चढ़कर कला दिखाने वाले, मल्ल---पहलवान, मौष्टिक-मुक्केबाज, विडंबक---विदूषक-मसखरे, कथक---कथा कहने वाले, प्लवक-उछलने या नदी आदि में तैरने का प्रदर्शन करने वाले, लासक-वीर रस की गाथाएं या रास गाने वाले, आख्यायक-शुभअशुभ बताने वाले, लंख-बांस के सिरे पर खेल दिखाने वाले, मंख-चित्रपट दिखा कर आजीविका चलाने वाले, तूणइल्ल-तूण नामक तन्तु-वाद्य बजाकर आजीविका करने वाले, तुब-वीणिक-तुबवीणा या पूगी बजाने वाले, तालाचर-ताली बजाकर मनोविनोद करने वाले आदि अनेक जनों से वह सेवित था। आराम-क्रीडा-वाटिका, उद्यान-बगीचे, कुएं, तालाब, बावड़ी, जल के छोटेछोटे बांध–इनसे युक्त था, नन्दनवन सा लगता था, वह ऊंची, विस्तीर्ण और गहरी खाई से युक्त था, चक्र, गदा भुसु डि–पत्थर फेंकने का एक विशेष शस्त्र--- गोफिया, अवरोध अन्तर्-प्राकार-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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