________________ पवित्र, स्वस्थ एवं श्रेयस्कर होता है / सहसा आश्चर्य होता है, आनन्द तथा दूसरे श्रमणोपासकों के अत्यन्त समृद्धि और सुखसुविधामय जीवन को एक ओर देखते हैं, दूसरी ओर यह देखते हैं, जब वे त्याग के पथ पर आगे बढ़ते हैं तो उधर इतने तन्मय हो जाते हैं कि भोग स्वयं छूटते जाते हैं / देह अस्थि-कंकाल बन जाता है, पर वे परम परितुष्ट और प्रहृष्ट रहते हैं / त्याग के रस की अनुभूति के बिना यह कभी सम्भव नहीं हो पाता / एक अद्भुत घटना : सत्य की गरिमा आनन्द के जीवन की एक घटना बहुत ही महत्वपूर्ण है / तपश्चरण एवं साधना के फलस्वरूप अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम से आनन्द अवधिज्ञानी हो जाता है / भगवान् महावीर के प्रमुख अन्तेवासी गौतम से अवधिज्ञान की सीमा के सम्बन्ध में हुए वार्तालाप में एक विवादास्पद प्रसंग बन जाता है / भगवान् महावीर प्रानन्द के मन्तव्य को ठीक बतलाते हैं / गौतम आनन्द के पास आकर क्षमा-याचना करते हैं / बड़ा उद्बोधक प्रसंग यह है / आनन्द एक गृही साधक था। गौतम भगवान् महावीर के ग्यारह गणधरों में सबसे मुख्य थे / पर, कितनी ऋजुता और अहंकारशून्यता का भाव उनमें था / वे प्रसन्नतापूर्वक अपने अनुयायी-अपने उपासक से क्षमा मांगते हैं। जैनदर्शन का कितना ऊँचा आदर्श यह है, व्यक्ति बड़ा नहीं, सत्य बड़ा है। सत्य के प्रति हर किसी को अभिनत होना ही चाहिए। इससे फलित और निकलता है, साधना के मार्ग में एक गृही भी बहुत आगे बढ़ सकता है क्योंकि साधना के उत्कर्ष का आधार आत्मपरिणामों की विशुद्धता है। उसे जो जितना साध ले, वह उतना ही ऊर्ध्वगमन कर सकता है। साधना की कसौटी श्रेयांसि बहुविघ्नानि-श्रेयस्कर कार्यों में अनेक विघ्न आते ही हैं, अक्सर यह देखते हैं, पढ़ते हैं / प्रस्तुत आगम के दस उपासकों में से छह के जीवन में उपसर्ग या विघ्न आये / उनमें से चार अन्ततः विघ्नों से विचलित हुए पर तत्काल सम्हल गये। दो सर्वथा अविचल और अडोल रहे / उपसर्ग अनुकूल-प्रतिकूल या मोहक-ध्वंसक-दोनों प्रकार के ही होते हैं / दूसरे अध्ययन का प्रसंग है, श्रमणोपासक कामदेव पोषधशाला में साधनारत था / एक देव ने उसे विचलित करने के लिए उसके शरीर के टुकड़े-टकड़े कर डाले / उसके पुत्रों की नृशंस हत्या कर डाली पर वह दढचेता उपासक तिलमात्र भी विचलित नहीं हा / यद्यपि यह दे की विक्रियाजन्य माया थी पर कामदेव को तो यथार्थ भासित हो रही थी। मनुष्य किसी भी कार्य में तब तक सुदृढ रह सकता है, जब तक उसके सामने मौत का भय न आए। पर, कामदेव ने दैहिक विध्वंस की परवाह नहीं की / तब देव ने उसके हृदय के कोमलतम अंश का संस्पर्श किया / पिता को पुत्रों से बहुत प्यार होता है। जिनके पुत्र नहीं होता, वे उसके लिए तड़फते रहते हैं / कामदेव के सामने उसके देखतेदेखते तीनों पुत्रों की हत्या कर दी गई पर वह आत्मबली साधक निष्प्रकम्प रहा / तभी तो भगवान महावीर ने साधु-साध्वियों के समक्ष एक उदाहरण के रूप में उसे प्रस्तुत किया / जो भीषण विघ्नबाधाओं के बावजूद धर्म में सुदृढ बना रहता है, वह निश्चय ही औरों के लिए आदर्श है। 23 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org