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________________ आठवां अध्ययन : महाशतक] [177 अच्छी तरह बन्द कर, जमीन में गाड़ दिया जाता है या धूप में रक्खा जाता है / वैसे एक महीने का विधान है, पर कुछ ही दिनों में भीतर ही भीतर उकट कर उस घोल में विलक्षण गन्ध, रस, प्रभाव उत्पन्न हो जाता है / वह आसव का रूप ले लेता है। वनौषधि आदि का जल के साथ क्वाथ तैयार कर, चतुर्थांश जलीय भाग रहने पर, उसे बर्तन में संधित कर जमीन में गाड़ा जाता है या धूप में रखा जाता है / यथासमय संस्कार-निष्पन्न होकर वह अरिष्ट बन जाता है। जमीन में गाड़े हुए या धप में दिए हए द्रव से मयर-यन्त्र--बाष्प-निष्कासन-यन्त्र द्वारा जब उस का सार चना लिया जाता है, वह मद्य है / उसमें मादकता की मात्रा अत्यधिक तीव्रता लिए रहती है / मद्य के निर्माण में गुड़ या खांड तथा रांगजड़ या तत्सदृश मूल-जड़ डालना आवश्यक है। पायर्वेद के ग्रन्थों में जहाँ मदिरा के भेदों का वर्णन है, वहां प्रकारान्तर से ये नाम भी पाए हैं, जिनका इस सूत्र में संकेत है। उनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है सुरा-भावप्रकाश के अनुसार शालि व साठी धान्य की पीठी से जो मद्य तैयार होता है, उसे सुरा कहा जाता है।' __ मधु-वह मद्य, जिसके निर्माण में अन्य वस्तुओं के साथ शहद भी मिलाया जाता है। अष्टांगहृदय मैं इसे माधव मद्य कहा गया है / सुश्रुतसंहिता में इसका मध्वासव के नाम से उल्लेख है / मधु और गुड़ द्वारा इसका संधान बतलाया गया है। मेरक-पआयुर्वेद के ग्रन्थों में इसका मैरेय नाम से उल्लेख है। सुश्रुतसंहिता में इसे त्रियोनि कहा गया है अर्थात् पीठी से बनी सुरा, गुड़ से बना पासव तथा मधु इन तीनों के मेल से यह तयार होता है। मद्य-वैसे मद्य साधारणतया मदिरा का नाम है, पर यहां संभवतः यह मदिरा के मार्दीक भेद से सम्बद्ध है / सुश्रुतसंहिता के अनुसार यह द्राक्षा या मुनक्का से तैयार होता है। सीधु-भावप्रकाश में ईख के रस से बनाए जाने वाले मद्य को सीधु कहा जाता है। वह ईख के पक्के रस एवं कच्चे रस दोनों से अलग-अलग तैयार होता है। दोनों की मादकता में अन्तर होता है। 1. शालिषष्टिकपिष्टादिकृतं मद्य सुरा स्मृता / " -भावप्रकाश पूर्व खण्ड, प्रथम भाग, सन्धान वर्ग 23 / 2. मध्वासबो माक्षिकेण सन्धीयते माधवाख्यो मद्यविशेषः / -अष्टांगहृदय 5, 75 (अरुणदत्तकृत सर्वाङ्गसुन्दरा टीका)। 3. मध्वासबो मधुगुडाभ्यां सन्धानम् / -सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान 45, 188 (डल्हणाचार्यविरचितनिबन्धसंग्रहा व्याख्या)। 4. सुरा पैष्टी, पासवश्च गुडयोनि:, मधु च देयमिति त्रियोनित्वम् / -सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान 45, 190 (व्याख्या)। 5. मार्दीकं द्राक्षोद्भवम् / -सुश्रुतसंहिता सूत्र स्थान 45, 172 (व्याख्या)। 6. इक्षोः पक्वं रसैः सिद्धः सीधुः पक्वरसश्च स: / प्रामस्तैरेव यः सीधुः स च शीतरस: स्मृतः // -भावप्रकाश पूर्व खण्ड, प्रथम भाग, सन्धान वर्ग 25 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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