________________ 178] [उपासकदशांगसूत्र प्रसन्न---सुश्रुतसंहिता के अनुसार सुरा का नितरा हुआ ऊपरी स्वच्छ भाग प्रसन्न या प्रसन्ना कहा जाता है / ' अष्टांगहृदय में वारुणी का पर्याय प्रसन्ना लिखा है / तदनुसार सुरा का ऊपरी स्वच्छ भाग प्रसन्ना है। उसके नीचे का गाढ़ा भाग जगल कहा जाता है। जगल के नीचे का भाग मेदक कहा जाता है / नीचे बचे कल्क को निचोड़ने से निकला द्रव बक्कस कहा जाता जाता है / 241. तए णं रायगिहे नयरे अन्नया कयाइ घु? यावि होत्था / एक बार राजगृह नगर में अमारि-प्राणि-वध न करने को घोषणा हुई / 242. तए णं सा रेवई गाहावइणी मंस-लोलुया, मंसेसु मुच्छिया 4 कोल-घरिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुन्भे, देवाणुप्पिया! मम कोल-घरिएहितो वएहितो कल्लाल्लि दुबे-दुवे गोण-पोयए उद्दवेह, उद्दवित्ता ममं उवणेह / / गाथापति की पत्नी रेवती ने, जो मांस में लोलुप एवं आसक्त थी, अपने पीहर के नौकरों को बुलाया और उनसे कहा तुम मेरे पीहर के गोकुलों में से प्रतिदिन दो-दो बछड़े मारकर मुझे ला दिया करो / 243. तए णं ते कोल-घरिया पुरिसा रेवईए गाहावइणीए 'तहत्ति' एयमट्ट विणएणं पडिसुणंति, परिसुणित्ता रेवईए गाहावइणीए कोल-घरिएहितो वहितो कल्लाकल्लिं दुवे दुवे गोणपोयए यहेंति, वहेत्ता रेवईए गाहावइणीए उवर्णेति / पीहर के नौकरों ने गाथापति की पत्नी रेवती के कथन को 'जैसी आज्ञा' कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया तथा वे उसके पीहर के गोकुलों में से हर रोज सवेरे दो बछड़े लाने लगे। 244. तए णं सा रेवई गाहावइणी तेहिं गोण-मंसेहि सोल्लेहि य 4 सुरं च 6 आसाएमाणी 4 विहरइ। __गाथापति की पत्नी रेवती बछड़ों के मांस के शूलक-सलाखों पर सेके हुए टुकड़ों आदि का तथा मदिरा का लोलुप भाव से सेवन करती हुई रहने लगी। महाशतक : अध्यात्म की दिशा में 245. तए णं तस्स महासयगस्स समणोवासगस्स बहूहि सोल जाव' भावमाणस्स चोइस 1. प्रसन्ना सूराया मण्ड उपर्यच्छो भागः / --सुश्रुतसंहिता सूत्रस्थान 45. 177 (व्याख्या) 2. वारुणी–प्रसन्ना। वारुण्या अधोभागो घनो जगल: / जगलस्थाधो भागो मेदकः / पानीयेन मद्यकल्कपीडनोत्पन्नो बक्कसः / -प्रष्टांगहृदय सूत्र स्थान 5, 68 (टीका)। 3. देखें सूत्र-संख्या 112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org