________________ प्रस्तावना (प्रथम संस्करण से) धर्म का मुख्य आधार किसी भी धर्म के चिर जीवन का मूल आधार उसका वाङमय है। वाङमय में वे सिद्धान्त सुरक्षित होते हैं, जिन पर धर्म का प्रासाद अवस्थित रहता है। शाखा-प्रशाखाओं की बात को छोड़ दें, भारतीय धर्मों में वैदिक, बौद्ध और जैन मुख्य हैं। वैदिकधर्म का मूल साहित्य वेद है, बौद्धधर्म का पिटक है, उसी प्रकार जैनधर्म का मूल साहित्य आगमों के रूप में उपलब्ध है। आगम आगम विशिष्ट ज्ञान के सूचक हैं, जो प्रत्यक्ष या तत्सदृश बोध से जुड़ा है / दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है---प्रावरक हेतुओं या कर्मों के अपगम से जिनका ज्ञान सर्वथा निर्मल एवं शुद्ध हो गया, अविसंवादी हो गया, ऐसे प्राप्त पुरुषों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का संकलन अागम हैं / आगमों के रूप में जो प्रमुख साहित्य हमें आज प्राप्त हैं, वह अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर द्वारा भाषित और उनके प्रमुख शिष्यों- गणधरों द्वारा संग्रथित हैं। आचार्य भद्रबाहु ने लिखा है- "अर्हत् अर्थ भाषित करते हैं। गणधर धर्मशासन या धर्मसंघ के हितार्थ निपुणतापूर्वक सूत्ररूप में उसका ग्रथन करते हैं / यो सूत्र का प्रवर्तन होता है / "3 ___ इसका तात्पर्य यह हुआ कि भगवान महावीर ने जो भाव अपनी देशना में व्यक्त किये, वे गणधरों द्वारा शब्दबद्ध किये गये। आगमों की भाषा वेदों की भाषा प्राचीन संस्कृत है, जिसे छन्दस् या वैदिकी कहा जाता है / बौद्धपिटक पाली में हैं, जो मागधी प्राकृत पर आधृत है / जैन आगमों की भाषा अर्द्धमागधी प्राकृत है / अर्हत् इसी में अपनी धर्मदेशना देते हैं। समवायांग सूत्र में लिखा है "भगवान् अर्द्धमागधी भाषा में धर्म का आख्यान करते हैं / भगवान् द्वारा भाषित अर्द्धमागधी भाषा आर्य, अनार्य, द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी, सरीसृप-रेंगने वाले जीव आदि सभी की भाषा 1. प्राप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः / उपचारादाप्तवचनं च ॥-प्रमाणनयतत्त्वालोक 4.1,2 / 2. प्रत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं / सासणस्स हियट्ठाए, तो सुत्तं पवत्तेइ ।।आवश्यकनियुक्ति 92 / [ 14 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org