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________________ आज शीशोदियाजी बड़े लक्षाधीश हैं और नगर के गणमान्य व्यक्तियों में हैं / ब्यावर नगर आपके व्यवसाय का मुख्य केन्द्र है / ब्यावर के अलग-अलग बजारों में तीन दुकानें हैं / एक दुकान अजमेर में है / किशनगढ़-मदनगंज, विजयनगर और सोजत रोड में भी आपकी दुकानें रह चुकी हैं / प्रमुख रूप से आप आढ़त का ही धंधा करते हैं / आपका व्यापारिक क्षेत्र अधिकांश भारतवर्ष है। आपके चार पुत्र हैं-श्री भंवरलालजी, श्री जंवरीलालजी, श्री माणकचन्दजी और श्री मोतीलालजी / इन चार पुत्रों में से एक अध्ययन कर रहा है और तीन व्यापार कार्य में हाथ बंटा रहे हैं शीशोदियाजी का व्यापारिक कार्य इतना सुव्यवस्थित और सुचारु रहता है कि आपकी दुकान पर काम करने वाले भागीदारों तथा मुनीमों की भी नगर में कीमत बढ़ जाती है। आपके यहाँ कार्य करना व्यक्ति की एक बड़ी योग्यता (qualification) समझी जाती है / आपकी फर्मों से जो भी पार्टनर या मनीम अलग हए हैं. वे आज बडी शान व योग्यता से अपना अच्छा व्यवसाय चला रहे हैं। उन्होंने भी व्यवसाय में नाम कमाया है / ऐसी स्थिति में आपके सुपुत्र भी यदि व्यापारनिष्णात हों तो यह स्वाभाविक ही है। उन्होंने आपका बहुत-सा उत्तरदायित्व संभाल लिया है। इसी कारण आपको सार्वजनिक, धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिये अवकाश मिल जाता है। ___ नगर की अनेक संस्थाओं से प्राय जुड़े हुए हैं। किसी के अध्यक्ष, किसी के कार्याध्यक्ष, किसी के उपाध्यक्ष, किसी के मंत्री, किसी के कोषाध्यक्ष, किसी के सलाहकार व सदस्य आदि पदों पर रह कर सेवा कर रहे हैं तथा अनेकों संस्थाओं की सेवा की है / मगर विशेषता यह है कि जिस संस्था का कार्यभार आप संभालते हैं उसे पूरी रुचि और लगन के साथ सम्पन्न करते हैं / श्री मरुधरकेसरी साहित्य प्रकाशन समिति, मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन, आगम प्रकाशन समिति, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन वीर संघ के तो आप प्रमुख आधार हैं। नगर की अन्य गोशाला, चेम्बर' सर्राफान आदि आदि संस्थाओं को भी पूरा योगदान दे रहे हैं। इस प्रकार शीशोदियाजी पूर्णरूप से आत्मनिर्मित एवं प्रात्मप्रतिष्ठित सज्जन हैं / अपनी ही योग्यता और अध्यवसाय के बल पर आपने लाखों की सम्पत्ति उपार्जित की है / मगर सम्पत्ति उपार्जित करके ही आपने सन्तोष नहीं माना, वरन उसका सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में सदुपयोग भी कर रहे हैं। एक लाख रुपयों से आपने एक पारमार्थिक ट्रस्ट की स्थापना की है / इसके अतिरिक्त आयके पास से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं जाता। आपने कई संस्थाओं की अच्छी खासी सहा की है। आगम प्रकाशन समिति के पाप महास्तम्भ हैं और कार्यवाहक अध्यक्ष की हैसियत से आपही उसका संचालन कर रहे हैं। प्रस्तुत 'उपासकदशांग' सूत्र के प्रकाशन का सम्पूर्ण व्ययभार समिति के कार्यवाहक अध्यक्ष श्री शीशोदियाजी ने ही वहन करके महत्त्वपूर्ण योग दिया है / समिति इस उदार सहयोग के लिये आपकी ऋणी है। [ 13 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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