________________ तृतीय अध्ययन : चलनीपिता] [113 उस पुरुष ने जब मुझे निडर देखा तो चौथी बार उसने कहा—मौत को चाहने वाले श्रमणोपासक चुलनीपिता ! तुम यदि अपने व्रत भंग नहीं करते हो तो आज (तुम्हारे लिए देव और गुरु सदश पूजनीय, तम्हारे हितार्थ अत्यन्त दुष्कर कार्य करने वाली-अति कठिन धर्म-क्रियाएं कर तुम्हारी माता को घर से ले पाऊंगा / लाकर तुम्हारे सामने उसका वध करूगा, उसके तीन मांसखण्ड करूगा, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा, उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सीचू गा, जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःखों से पीड़ित होकर असमय में ही) प्राणों से हाथ धो बैठोगे / 143. तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि / उस पुरुष द्वारा यों कहे जाने पर भी मैं निर्भीकतापूर्वक धर्म-ध्यान में स्थित रहा / 144. तए णं से पुरिसे दोच्चंपि तच्चपि ममं एवं वयासी-हं भो! चुलणोपिया ! समणोवासया! अज्ज जाव' ववरोविज्जसि / उस पुरुष ने दूसरी बार, तीसरी बार मुझे फिर कहा-श्रमणोपासक चुलनीपिता! अाज तुम प्राणों से हाथ धो बैठोगे / 145. तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चंपि तच्चपि ममं एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए 5, अहो णं! इमे पुरिसे अणारिए जाव (अणारिय-बुद्धी, अणारियाई, पावाई कम्माई) समायरइ, जेणं ममं जेट्ठ पुत्तं साओ गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव' आयंचइ, तुम्भे वि य णं इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता ममं अग्गओ घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाइए / से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे आसाइए, महया महया सद्देणं कोलाहले कए। उस पुरुष द्वारा दूसरी बार, तोसरी बार यों कहे जाने पर मेरे मन में ऐसा विचार पाया, अरे ! इस अधम, नीचबुद्धि पुरुष ने ऐसे नीचतापूर्ण पापकर्म किए, मेरे ज्येष्ठ पुत्र को, मंझले पुत्र को और छोटे पुत्र को घर से ले आया, उनकी हत्या की, उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर को सींचा / अब तुमको भी (माता को भी) घर से लाकर मेरे सामने मार डालना चाहता है। इसलिए अच्छा यही है, मैं इस पुरुष को पकड़ लू। यों विचार कर मैं उसे पकड़ने के लिये उठा, इतने में वह आकाश में उड़ गया। उसे पकड़ने को फैलाये हुए मेरे हाथों में खम्भा आ गया। मैंने जोर-जोर से शोर किया। चुलनीपिता द्वारा प्रायश्चित्त 146. तए णं सा भद्दा सत्थवाहो चुलणोपियं समणोवासयं एव वयासो-नो खलु केइ पुरिसे तव जाव (जेट्टपुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नोणेइ, नोणेता तव अग्गओ धाएइ, तो खलु केइ पुरिसे तव) कणीयसं 1. देखें सूत्र-संख्या 98 2. देखें सूत्र-संख्या 135 3. देखें सूत्र-संख्या 136 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org