________________ 112] [उपासकदशांगसूत्र पुरुष था, जिसने अत्यन्त क्रुद्ध होकर एक बड़ी नीली तलवार निकाल कर मुझे कहा-मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक चुलनीपिता ! यदि तुम आज शील, (व्रत, विमरण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास) का त्याग नहीं करोगे, भंग नहीं करोगे तो तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे / 139. तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि / उस पुरुष द्वारा यों कहे जाने पर भी मैं निर्भीकता के साथ अपनी उपासना में निरत रहा। 140. तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता ममं दोच्चंपि तच्वंपि एवं वयासी हं भो! चुलणीपिया ! समणोवासया ! तहेव जाव गायं आयंचइ। जब उस पुरुष ने मुझे निर्भयतापूर्वक उपासनारत देखा तो उसने मुझे दूसरी बार, तीसरी बार फिर कहा-श्रमणोपासक चुलनीपिता ! जैसा मैंने तुम्हें कहा है, मैं तुम्हारे शरीर को मांस और रक्त से सींचता हूँ और उसने वैसा ही किया / 141. तए णं अहं उज्जलं, जाव (विउलं, कक्कसं, पगाढं, चंडं, दुक्खं, दुरहियासं वेयणं सम्मं सहामि, खमामि, तितिक्खामि, अहियासेमि / एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्यं जाव कणीयसं जाव आयंचइ / अहं तं उज्जलं जाबअहियासेमि।। मैंने (सहनशीलता, क्षमा और तितिक्षापूर्वक वह तीव्र, विपुल-अत्यधिक, कर्कश-कठोर, प्रगाढ, रौद्र, कष्टप्रद तथा दुःसह) वेदना झेली। छोटे पुत्र के मांस और रक्त से शरीर सींचने तक सारी घटना उसी रूप में घटित हुई। मैं वह तीव्र वेदना सहता गया। 142. तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासीहं भो! चुलणीपिया! समणोवासया! अपत्थिय-पत्थिया! जाव न भंजेसि, तो ते अज्ज जा इमा माया गुरु जाव (जणणी दुक्कर-दुक्करकारिया, तं साओ गिहाओ नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता तओ मंससोल्लए करेमि, करेत्ता आदाण-भरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव गाय मंसेण य सोणिएण य आयंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ) ववरोविज्जसि / 1. देखें सूत्र-संख्या 98 2. देखें सूत्र-संख्या 97 3. देखें सूत्र-संख्या 136 4. देखें सूत्र-संख्या 136 .5. देखें सूत्र यही 6. देखें सूत्र-संख्या 97 7. देखें सूत्र-संख्या 107 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org