________________ द्वितीय अध्ययन : गाथापति कामदेव] [57 स्वीकार किया,) श्रमण भगवान् महावीर के पास अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति-धर्म-शिक्षा के अनुरूप उपासना-रत हो गया। देव द्वारा पिशाच के रूप में उपसर्ग 93. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुन्वरत्तावरत्त-काल-समयंसि एगे देवे मायीभिच्छदिट्ठी अंतियं पाउन्भूए। (तत्पश्चात् किसी समय) आधी रात के समय श्रमणोपासक कामदेव के समक्ष एक मिथ्यादृष्टि, मायावी देव प्रकट हुआ। विवेचन उत्कृष्ट तपश्चरण, साधना एवं धर्मानुष्ठान के सन्दर्भ में भयोत्पादक तथा मोहोत्पादक-- दोनों प्रकार के विघ्न उपस्थित होते रहने का वर्णन भारतीय वाङमय में बहुलता से प्राप्त होता है। साधक के मन में भय उत्पन्न करने के लिए जहां राक्षसों तथा पिशाचों के क्रूर एवं नृशंस कर्मों का उल्लेख है, वहां काम व भोग की ओर आकृष्ट करने के लिए, मोहित करने के लिए वैसे वासना-प्रधान पात्र भी प्रयत्न करते देखे जाते हैं। वैदिक वाङमय में ऋषियों के तप एवं यज्ञानुष्ठान में विघ्न डालने, उन्हें दूषित करने हेतु राक्षसों द्वारा उपद्रव किये जाने के वर्णन अनेक पुराण-ग्रन्थों तथा दूसरे साहित्य में प्राप्त होते हैं। दूसरी ओर सुन्दर देवांगनाओं द्वारा उन्हें मोहित कर धर्मानुष्ठान से विचलित करने के उपक्रम भी मिलते हैं। बौद्ध वाङमय में भी भगवान् बुद्ध के 'मार-विजय' प्रभृति अनेक प्रसंगों में इस कोटि के वर्णन उपलब्ध हैं। जैन साहित्य में भी ऐसे वर्णन-क्रम की अपनी परम्परा है। उत्तम, प्रशस्त धर्मोपासना को खण्डित एवं भग्न करने के लिए देव, पिशाच प्रादि द्वारा किये गये उपसर्गो-उपद्रवों का बड़ा सजीव एवं रोमांचक वर्णन अनेक आगम-ग्रन्थों तथा इतर साहित्य में प्राप्त होता है, जहां रौद्र, भयानक एवं वीभत्स–तीनों रस मूर्तिमान् प्रतीत होते हैं / प्रस्तुत वर्णन इसका ज्वलन्त उदाहरण है। 94. तए णं से देवे एगं महं पिसाय-रूवं विउव्वइ / तस्स णं देवस्स पिसाय-रूवस्स इमे एयारूवे वण्णा-वासे पण्णत्ते सीसं से गो-किलिज-संठाण-संठियं सालिभसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा, महल्ल-उट्टिया-कभल्ल-संठाण-संठियं निडालं, मुगुस-पुच्छं व तस्स भुमगाओ फुग्ग-फुग्गाओ विगय-वीभच्छ-दसणाओ, सीस-घडि-विणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभच्छ-दसणाई, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभच्छ-दंसणिज्जा, उरब्भ-पुड-संनिभा से नासा, झुसिरा-जमलचुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासा-पुडया, घोडय-पुच्छंव तस्स मंसूई कविल-कविलाई विगयबीभच्छ-दंसणाइं, उट्ठा उट्टस्स चेव लंबा, फाल-सरिसा से दंता, जिन्भा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगयबीभच्छ-दंसणिज्जा, हल-कुद्दाल-संठिया से हणुया, गल्ल-कडिल्लं व तस्स खड्डे फुट्ट कविलं फरुसं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org