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________________ द्वितीय अध्ययन : कामदेव 91. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अन्सयणस्स के अठे पण्णते ? आर्य सुधर्मा से जम्बू ने पूछा-यावत् सिद्धि-प्राप्त भगवान् महावीर ने सातवें अंग उपासकदशा के प्रथम अध्ययन का यदि यह अर्थ-आशय प्रतिपादित किया तो भगवन् ! उन्होंने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया है ? श्रमणोपासक कामदेव 92. एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया। कामदेवे गाहावई। भद्दा भारिया। छ हिरण्ण-कोडीओ निहाण-पउत्ताओ, छ वुड्डि-पउत्ताओ, छ पवित्थर-पउत्ताओ, छ वया, दस-गो-साहस्सिएणं वएणं / समोसरणं / जहा आणंदो तहा निग्गओ, तहेव साक्य-धम्म पडिवज्जइ। सा चेव बत्तब्वया जाव' जेट्ठ-पुत्तं, मित्त-नाई आपुच्छित्ता, जेणेव पोसह-साला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जहा आणंदो जाव (पोसह-सालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहिता दब्भ-संथारयं संथरइ, संथरेत्ता बब्भ-संथारयं दुरुहइ, दुरुहिता-पोसहसालाए पोसहिए दन्भ-संथारोवगए) समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म-पत्ति उवसंपज्जित्ताणं विहर। आर्य सुधर्मा बोले- जम्बू ! उस काल-वर्तमान अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय-जब भगवान् महावीर सदेह विद्यमान थे, चम्पा नामक नगरी थी। पूर्णभद्र नामक चैत्य था। वहां के राजा का नाम जितशत्रु था। वहां कामदेव नामक गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। गाथापति कामदेव का छः करोड़ स्वर्ण-स्वर्ण-मुद्राएं खजाने में रखी थीं, छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं घर के वैभव-साधनसामग्री में लगी थीं / उसके छह गोकुल थे / प्रत्येक गोकुल में दस हजार गायें थीं। भगवान् महावीर पधारे। समवसरण हुआ। गाथापति आनन्द की तरह गाथापति कामदेव भी अपने घर से चला भगवान् के पास पहुंचा, श्रावक-धर्म स्वीकार किया। __आगे की घटना भी वैसी ही है, जैसी आनन्द की। अपने बड़े पुत्र, मित्रों तथा जातीय जनों की अनुमति लेकर कामदेव जहां पोषध-शाला थी, वहां आया, (पाकर आनन्द की तरह पोषध-शाला का प्रमार्जन किया- सफाई की, शौच एवं लघुशंका के स्थान का प्रतिलेखन किया, प्रतिलेखन कर कुश का बिछौना लगाया, उस पर स्थित हुआ। वैसा कर पोषध-शाला में पोषध 1. देखें सूत्र संख्या 2 2. देखें सूत्र संख्या 66 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003475
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages276
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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