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________________ तेतीसवें समवाय का चौथा सूत्र-'जया णं सूरिए......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति४' में जम्बूद्वीप में कुछ न्यून तेतीस हजार योजन दूर से सूर्य-दर्शन होता कहा है / चौतीसवें समवाय का दूसरा सूत्र--'जंबुद्दीवे णं दीवे.....' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६४२ में भी जम्बूद्वीप में चौतीस चक्रवर्तीविजय कहे हैं। चौतीसवें समवाय का तीसरा सूत्र-'जंबुद्दीवे णं दीवे चोत्तीसं दीहवेयड्ढा.......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी जम्बूद्वीप६४3 में चौतीस दीर्घ वताढ्य पर्वत बतलाए हैं। चौतीसवें समवाय का चौथा सूत्र-'जंबुद्दीवे णं दीवे........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 44 में भी जम्बूद्वीप में उत्कृष्ट चौतीस तीर्थंकर उत्पन्न होना कहा है।। सेंतीसवें समवाय का दूसरा सूत्र-'हेमवय-हेरण्णवयाओ ........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति४५ में भी हेमवन्त और हेरण्यवंत की जीवा के आयाम का वर्णन है। अड़तीसवें समवाय या दूसरा सूत्र- 'हेमवए-एरण्णवईमाणं...' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 46 में भी हेमवन्त और हेरण्यवंत की जीवा के मायाम का वर्णन है। अड़तीसवें समवाय का तीसरा सूत्र--'प्रत्थस्स णं पव्वयरण्णो ...' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 647 में भी मेरुपर्वत के द्वितीय काण्ड की ऊंचाई अड़तीस हजार योजन की बताई है। उनचालीसवें समवाय का दूसरा सूत्र—'समयखेत्ते एगूणचत्तालीसं........' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति६४८ में भी समयक्षेत्र में उनचालीस कुल-पर्वत बताये हैं। चालीसवें समवाय का दूसरा सूत्र–'मंदरचूलिया गं.....' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 46 में भी वर्णन है कि मेरु की चूलिका चालीस योजन ऊंची है / पैतालीसवें समवाय का पहला सूत्र--समयखेत्तं णं पणयालीस .......' है तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति५५० में भी समयक्षेत्र का आयाम-विष्कम्भ पैंतालीस लाख योजन का बताया है / पैतालीसवें समवाय का छठा सूत्र--..'मंदरस्सणं पव्वयस्स........' तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी मेरुपर्वत एवं लवण समुद्र का अव्यवहित अन्तर चारों दिशाओं में पैंतालीस-पैतालीस हजार योजन का बताया है। 641. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 7, सूत्र 133 642. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 95 643. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 6, सूत्र 125 644. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 95 645. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 79 646. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 111 647. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 108 646. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 6, सूत्र 125 649. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 106 650. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-बक्ष. 4, सूत्र 177 651. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-वक्ष. 4, सूत्र 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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