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________________ पन्द्रहवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर सोलहवें सूत्र तक जिन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, वे प्रज्ञापना 452 में भी हैं। सोलहवें समवाय का द्वितीय सूत्र-'सौलस कसाया पण्णत्ता".......' है तो प्रज्ञापना५५३ में भी अनन्तानुवन्धी प्रादि सोलह कषाय चचित हुये हैं / सोलहवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर पन्द्रहवें सूत्र तक जिन बातों पर प्रकाश डाला है, वे प्रज्ञापना५ 54 में भी विश्लेषित हैं। सत्तरहवें समवाय के ग्यारहवें सत्र से लेकर बीसवें सुत्र तक जिन विषयों पर चिन्तन-मनन किया गया है, उन विषयों पर प्रज्ञापना५५ में भी प्रकाश डाला गया है। अठारहवें समवाय का पांचवां सूत्र- 'बंभीए णं लिवीए........' है तो प्रज्ञापना५५६ में भी ब्राह्मी लिपी का लेखन अठारह प्रकार का बताया है। अठारहवें समवाय के नौवें सूत्र से लेकर सतरहवें सूत्र तक जिन विषयों को प्रकाशित किया गया है, वे विषय प्रज्ञापना५५७ में भी विस्तार से निरूपित हैं। उन्नीसवें समवाय में छठे सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक जिन विषयों की चर्चा की गई है, वे विषय प्रज्ञापना५५८ में भी आये हैं। बीसवें समवाय का चौथा सूत्र--'पाणयस्स णं देविदस्स.......' है तो प्रज्ञापना५५६ में भी प्राणत कल्पेन्द्र के बीस हजार सामनिक देव बताये हैं। बीसवें समवाय के आठवें सत्र से सत्तरहवें सूत्र तक जो वर्णन है वह प्रज्ञापना 560 में भी मिलता है। इक्कीसवें समवाय में पांचवें सूत्र से लेकर चौदहवें समवाय तक जिन विषयों की चर्चा है, वे प्रज्ञापना५६ . में भी चर्चित हुए हैं। बावीसवें समवाय में सात सूत्र से लेकर सोलहवे सूत्र तक जिन विषयों पर चिन्तन हुआ है, उन विषयों पर प्रज्ञापना'६२ में भी विश्लेषण प्रा है। 552. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 304 553. प्रज्ञापना-पद 14, सूत्र 188 554. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सू. 146, पद 29, मू. 304 555. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद सू. 146; पद 28, सू. 304 556. प्रज्ञापना--पद 1, सूत्र 37 557. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 304 558. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सू. 146 ; पद 28, सू. 304 559. प्रज्ञापना-पद 5, सूत्र 53 560. प्रज्ञापना--पद 4, सूत्र 94, 95, 102; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 304 561. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 304 562. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सू. 146; पद 29, सू. 304 [ 88 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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