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________________ सातवें समवाय के बारहवें सत्र से लेकर बाबीसवें सत्र तक जिन विषयों का उल्लेख हमा है, वे विषय प्रज्ञापना५४१ में भी उसी तरह प्राप्त हैं। - आठवें समवाय का सातवाँ सूत्र-'असामइए केवलीसमुग्घाए........' है तो प्रज्ञापना५४ 2 में भी केवली समुद्घात के आठ समय बताये है / पाठवें समवाय के दशवें मूत्र से लेकर सत्तरहवें सूत्र तक जिन विषयों की चर्चाएं हुयी हैं, वे प्रज्ञापना५४३ में भी इसी तरह प्रतिपादित हैं / नवमें समवाय के ग्यारहवें सूत्र से लेकर उन्नीसवें सूत्र तक जिन विषयों पर चिन्तन किया गया है वे, प्रज्ञापना५४४ में भी निहारे जा सकते हैं। दशवें समवाय के नवम सूत्र से लेकर चौवीसवें मूत्र तक जिन-जिन विषयों पर विचारणा हुयी है, वे प्रज्ञापना 145 में भी चचित हैं। ग्यारहवें समवाय का छठा सूत्र---'हेद्विमगे विजजाण .......' है तो प्रज्ञापना५४६ में भी नीचे के तीन वेयक देवों के एक सौ ग्यारह विमान बताये हैं। ग्यारहवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर पन्द्रहवें सूत्र तक जिन चिन्तनबिन्दुओं का उल्लेख है, प्रज्ञापना५४' में भी उन सभी पर प्रकाश डाला गया है। बारहवें समवाय के बारहवें सूत्र से उन्नीसवें सूत्र तक जिन विषयों के सम्बन्ध में विवेचन हुआ है, प्रज्ञापना४८ में भी उन सब पर चिन्तन हुआ है। तेरहवें समवाय का सातवाँ सत्र-'गब्भं वक्कंति य.......' है तो प्रज्ञापना.४ में भी गर्भजतिर्यञ्च पंचेन्द्रिय के तेरह योग प्रतिपादित हैं / तेरहवें समवाय के नवमें सूत्र से लेकर सोलहवें सूत्र तक जिन पहलुनों पर विचार किया गया है, बे विषय प्रज्ञापना५० में भी प्रज्ञापित हैं। चौदहवें समवाय के नवमें सूत्र से लेकर सत्तरहवें समवाय तक जिन विषयों को उजागर किया गया है, वे प्रज्ञापना५५१ में भी अपने ढंग से विवेचित हये हैं। 541. प्रज्ञापना-पद 4, सू. 94, 95, 102, 103; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 306 542. प्रज्ञापना-पद 36, सू. 331 543. प्रज्ञापना-पद 4, सू. 94, 95, 102, 103; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 304 544. प्रज्ञापना—पद 23, पद 4, सू. 94, 95. 102, 103; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 304 545. प्रज्ञापना-पद 4, सू. 94, 95, 96, 100, 102; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 306 546. प्रज्ञापना-पद 2, सु. 53 547. प्रज्ञापना--पद 4, सू. 94, 95, 102; पद 7, सू. 146; पद 28, सू. 306 548. प्रज्ञापना--पद 4, सू. 94, 95, 102; पद 7, सू. 146; पद 29, सू. 304 549. प्रज्ञापना---पद 16, सू. 202 550. प्रज्ञापना--पद 4, सू. 94, 95, 102; पद 7, सू. 146 ; पद 28, सू. 306 551. प्रज्ञापना-पद 4, सू. 94, 95, 102; पद 7, स. 146; पद 28, स. 304 { 87 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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