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________________ तेईसवें समवाय के पांचवें सूत्र से लेकर बारहवें सूत्र तक जिन भावों की प्ररूपणा हुई है वे भाव प्रज्ञापना 563 में भी इसी तरह प्ररूपित हैं। चौबीसवें समवाय के सातवें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक जिन विचारों को गुम्फित किया गया है, वह प्रज्ञपना६४ में भी उसी रूप में व्यक्त हुए हैं। पच्चीसवें समवाय के दशवे सूत्र से लेकर सत्तरहवें सूत्र तक जो वर्णन है वह प्रज्ञापमा 65 में भी उसी तरह मिलता है। छब्बीसवें समवाय के दूसरे सूत्र से दशवें सूत्र तक जो विचारसूत्र आये हैं वे प्रज्ञापना५६६ में भी देखे जा सकते हैं। सत्ताईसवें समवाय के सातवें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक जिन विचारों को निरूपित किया है वे प्रज्ञापना६७ में भी उसी तरह मिलते हैं। अठाईसवें समवाय का चौथा सूत्र-'ईसाणे गं कप्पे अठ्ठावीसं विमाण-सय-सहस्सा पण्णत्ता' है तो प्रज्ञापन 598 में भी ईशान कल्प के अठावीस लाख विमान बताये हैं। अठाईसवें समवाय के छठे सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक, उनतीसवें समवाय के दसवें सूत्र से लेकर सत्तरहवें सूत्र तक, तीसवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर पन्द्रहवें सूत्र तक, एकतीसवें समवाय के छठे सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक, बत्तीसवें समवाय के सातवें सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक, तेतीसवें समवाय के पांचवें सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक जिन विषयों पर चिन्तन हुआ है, वे विषय प्रज्ञापना५६६ में भी अच्छी तरह से चर्चित किये गये हैं। ___ चौतीसवें समवाय का पांचवां सूत्र---'चमरस्स णं असुरिंदस्स........' है तो प्रज्ञापना'७० में भी चमरेन्द्र के चौतीस लाख भवनावास बताये हैं। उनचालीसवें समवाय का चौथा सूत्र-'नाणावरणिज्जस्स........' है तो प्रज्ञापना५७१ में भी ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र, और आयु-इन चार मूल कर्म प्रकृतियों की उनचालीस उत्तरकर्म प्रकृतियां बताई हैं। चालीसवें समवाय का चौथा सूत्र-----'भूयाणंदस्स' णं नागकुमारस्स नागरण्णो........' है तो प्रज्ञापना५७२ में भी भूतानन्द नागकूमारेन्द्र के चालीस लाख भवनावास बताये हैं। चालीसवें समवाय का पाठवां सूत्र-'महासुक्के कप्पे........' है तो प्रज्ञापना५७3 में भी महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमानावास का वर्णन है। 563. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102; पद 7, सूत्र 146; पद 28, सूत्र 306 564. प्रज्ञापना--पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सूत्र 146; पद 28, सूत्र 306 565. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सूत्र 146; पद 28, सूत्र 306 566. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102; पद 7, सूत्र 146; पद 28, सूत्र 306 567. प्रज्ञापना-पद 4, सूत्र 94, 95, 102; पद 7, सूत्र 146; पद 28, सूत्र 306 568. प्रज्ञापना-पद 2, सूत्र 53 569. प्रज्ञापमा-पद 4, सूत्र 94, 95, 102, पद 7, सूत्र 146, पद 28, सूत्र 306 570. प्रज्ञापना-पद 2, सुत्र 46 571. प्रज्ञापना-पद 23, सूत्र 293 572. प्रज्ञापना-पद 2, सूत्र 132 573. प्रज्ञापना--पद 2, सूत्र 132 [ 89 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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