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________________ समवायांग के छठे समवाय का चौथा सूत्र--'छविहे अभितरे तबोकम्मे पण्णत्ते........' है तो भगवती30" में भी छः आभ्यन्तर तप का वर्णन है / समवायांग के छठे समवाय का पांचवां सूत्र-'छ छा उमत्थिया समुग्घाया.......' है तो भगवती 302 में भी छाद्यस्थिकों के छः समुद्घात बताए हैं। यांग के छठे समवाय का दसवां मत्र_तच्चाए पढवीए ........है तो भगवती 303 में भी बालुकाप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों की स्थिति छ: सागरोपम की बतायी है। समवायांग के छठे समवाय का ग्यारहवाँ सूत्र--'असुरकुमाराणं........' है तो भगवती 3 04 में भी कुछ असुरकुमार देवों की स्थिति छः पल्योपम की प्रतिपादित है। समवायांग के छठे समवाय का बारहवां सूत्र---'सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु.......' है तो भगवती३०५ में भी सौधर्म व ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति छः पल्योपम को बतायी है। समवायांग सूत्र के छठे समवाय का तेरहवाँ सूत्र-'सणंकुमारमाहिदेसु ......' है तो भगवती 06 में भी सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति छ: पल्योपम की बतायी है। समवायांग के छठे समवाय का चौदहवां सुत्र-'जे देवा सर्वभूरमणं.......' है तो भगवती 3 07 में भी स्वयंभू स्वयंभूरमण विमान में उत्पन्न होने वालों को उत्कृष्ट स्थिति छः सागर की कही है। समवायांग के छठे समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र—'तेणं देवा, छह अद्धमासाणं.....' है तो भगवती 308 में भी स्वयंभू आदि विमानों के देव छः पक्ष में श्वासोच्छ्वास लेते हैं, ऐसा वर्णन है। समवायांग के छटे समवाय का सोलहवां सूत्र—'तेसि णं देवाणं .......' है तो भगवती 306 में भी स्वयंभू यावत् विमानवासी देवों की इच्छा आहार लेने की छः हजार वर्ष के बाद होती है।। समवायांग सूत्र के सातवें समवाय का तृतीय सूत्र- 'समणे भगवं....... ' है तो भगवती.. में भी श्रमण भगवान महावीर सात हाथ के ऊँचे कहे गए हैं। समवायांग के सातवें समवाय का बारहवां सूत्र-'इमोसे गं रयणप्पहाए ........' है तो भगवती" में भी रत्नप्रभा पृथ्बी के कुछ नैरयिकों की स्थिति सात पल्योपम की प्रतिपादित है। 301. भगवती श. 25 उ. 7 302. भगवती श. 13 उ. 10 303. भगवती श. 1 उ.१ 304. भगवती श. 1 उ. 1 305. भगवती श. 1 उ. 1 306. .भगवती श. 1 उ. 1 07. भगवती श. 1 उ. 1 08. भगवती श. 1 उ. 1 309. भगवती श. 1 उ. 1 310. भगवती श. 1 उ. 1 311. भगवती श. 1 उ. 1 الله الله [ 65 } Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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