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________________ समवायांग के चौथे समवाय का चौदहवाँ सुत्र--सणंतकुमार-माहिंदेसु...........' है तो भगवती२६० में भी सनत्कुमार और माहेन्द्र कुमार के कुछ देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही है। समवायांग के चतुर्थ समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र-जे देवा किटिंठ सूकिटिंठ........' है तो भगवती२६१ में भी कृष्टि, सुकृष्टि, आदि वैमानिक देवों की उत्कृष्ट स्थिति चार सागरोपम की कही है। ___ समवायांग के पाँचवे समवाय का छठा सूत्र-'पंच निज्जरट्ठाणा पण्णत्ता' है तो-भगवती२६२ में भी निर्जरा के प्राणातिपातविरति आदि पाँच स्थान बताये हैं। समवायांग के पांचवें समवाय का आठवाँ सुत्र --'पंच अस्थिकाया पण्णत्ता.......' है तो भगवती२६३ में भी धर्मास्तिकाय आदि पांच अस्तिकाय बताये हैं। समवायांग के पांचवें समवाय का चौदहवां सूत्र--'इमोसे रयणपहाए'....' है तो भगवती२६४ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति पाँच पल्योपम की कही है। समवायांग के पाँचवें समवाय का पन्द्रहवां सूत्र –'तच्चाए णं पुढवीए........' है तो भगवती२६५ में भी बालुकाप्रभा पृथ्वी के कुछ नरकियों की स्थिति पांच पल्योपम की कही है। समवायांग के पांचवें समवाय का सोलहवां सूत्र--'असुरकुमाराणं देवाणं........' है तो भगवती२६६ में भी असुरकुमार देवों की स्थिति पाँच पल्योपम की कही है। समवायांग के पांचवें समवाय का सत्तरहवाँ सूत्र- 'सौहम्मीसाणेसु........' है तो भगवती२६७ में भी सौधर्म, ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति पाँच पल्योपम की बतायी है। समवायांग के पांचवें समवाय का अठारहवाँ सूत्र-'सणं कुमार-माहिंदेसु.......' है तो भगवती२६८ में भी सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति पाँच सागरोपम की कही है। समवायांग के पांचवें समवाय का उन्नीसवाँ सुत्र-'जे देवा वायं सूवायं.......' है तो भगवती 6 में भी वात-सुवात आदि वैमानिक देवों की उत्कृष्ट स्थिति पाँच सागर की कही है। समवायांग के छठे समवाय का तृतीय सूत्र है—'छविहे बाहिरे तवोकम्मे पण्णते.... ...' तो भगवती 300 में भी बाह्यतप के अनशन आदि छः भेद बताये हैं। 290. भगवती-श. 1 उ. 1 291. भगवती-श. 1 उ. 1 292. भगवती--श. 7 उ. 10 293. भगवती-श. 2 उ. 10 294. भगवती-श. 1. उ. 1 295. भगवती-श. 1 उ. 1 296. भगवती-श. 1 उ.१ 297. भगवती-श.१ उ.१ 298. भगवती-श. 1 उ.१ 299. भगवती-श.१ उ. 1 300. भगवती-श. 25 उ. 7 [ 64 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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