________________ समवायांग के प्रथम समवाय का तेतीसवां सूत्र है—'असंखिज्ज वासाउय........' तो भगवती में भी असंख्य वर्षों को प्रायुवाले कुछ गर्भज मनुष्यों की स्थिति एक पल्योपम की बतायी है। समवायांम के प्रथम समवाय का चौतीसवाँ सूत्र है-'वाणमंतराणं देवाणं........' तो भगवती२६६ में भी वाणव्यन्तर देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की कही है। समवायांग के प्रथम समवाय का पैतीसवाँ सूत्र है 'जोइसियाणं.......... .' तो भगवती२७० में भी ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम अधिक लाख वर्ष की कही है। समवायांग के प्रथम समवाय का छत्तीसवाँ सूत्र--सोहम्मे कप्पे देवाण...........' है तो भगवतीसूत्र 271 में भी सौधर्मकल्प के देवों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम की कही है। समवायांग के प्रथम समवाय का सेंतीसवाँ सूत्र है-'सोहम्मे कप्पे.......' तो भगवती२७२ में भी सौधर्म कल्प के कुछ देवों की स्थिति एक सागरोपम की कही है। समवायांग के प्रथम समवाय का अड़तीसवां सूत्र है-'ईसाणे कप्पे देवाण.........' तो भगवती७३ में भी ईशान कल्प के देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक एक पल्योपम की कही है। समवायांग सूत्र के प्रथम समवाय का उनचालीसवाँ सूत्र है-'ईसाणे काप्पे देवाण सूत्र में भी ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति एक सागरोपम की कही है। समवयांग के प्रथम समवाय का तयालीसवाँ सूत्र है.-'संतेगइया भवसिद्धिया.......' तो भगवती७५ में भी इस का वर्णन है। समवायांग के तृतीय समवाय का तेरहवां सूत्र है-'इमीसे णं रयणप्पहाए...' है तो भगवती 76 में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति तीन पल्योपम की बतायी है। ___ समवायांग के तृतीय समवाय का चौदहवां सूत्र है-'दोच्चाए णं पुढवीए........' तो भगवती२७७ में भी शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति तीन सागरोपम की बतायी है। समवायांग के तृतीय समवाय का पन्द्रहवाँ सूत्र है -'तच्चाए णं पूढवीए........' तो भगवती२७८ में भी बालुकाप्रभा पृथ्वी के नरयिकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की बतायी है। 268. भगवती-श.१ उ.१ 269. भगवती-श. 1 उ. 1 270. भगवती-श. 1 उ. 1 271. भगवती-श, 1 उ. 1 272. भगवती-श. 1 उ. 1 273. भगवती-श. 1 उ. 1 274. भगबती-श. 1 उ. 1 275. भगवती-श. 6, 12, उ.१०, 2 276. भगवती-श. 1 उ. 1 277. भगवती-श.१ उ. 1 278, भगवती-श.१ उ.१ [ 62 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org