________________ तक तृतीय विभाग में यौगलिक-मर्यादाएँ धीरे-धीरे विनष्ट होने लगती हैं। तृष्णाएँ बढ़ती हैं। और कल्पवृक्षों की शक्ति क्षीण होने लगती है। उस समय व्यवस्था करने वाले कुछ विशिष्ट व्यक्ति पैदा होते हैं। उन्हें कुलकर की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। प्रथम कुलकर तृतीय आरा के पल्य जितना भाग अवशिष्ट रहने पर होते हैं। कलकरों की संख्या के सम्बन्ध में विभिन्न ग्रन्थों में मतभेद रहे हैं।२२७ अन्तिम कुलकर नाभि के पुत्र "ऋषभ" हये जो प्रथम तीर्थकर भी थे। उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती हुए। तीर्थकर ऋषभ ने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया तो चक्रवर्ती ने राज्य-चक्र का। चतुर्थ आरे में तेवीस तीर्थकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नी वासुदेव और प्रतिवासुदेव आदि महापुरुष उत्पन्न होते हैं / इस प्रकार हम देखते हैं कि समवायांग में जिज्ञासु साधकों के लिए और अनुसंधित्सुओं के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संकलन है / वस्तु-विज्ञान, जैन-सिद्धान्त, एवं जैन-इतिहास की दृष्टि से यह आगम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसमें शताधिक विषय हैं। आधुनिक चिन्तक समवायांग में आये हुए गणधर गौतम की 92 वर्ष की आयु और गणधर सुधर्मा की 100 वर्ष की प्रायू पढ़कर यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि समवायांग की रचना भगवान महावीर के मोक्ष जाने के पश्चात् हुई है। हम उनके तर्क के समाधान में यह नम्र निवेदन करना चाहेंगे कि गणधरों की उम्र आदि विषयों का देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने इसमें संकलन किया है। स्थानाङ्ग की प्रस्तावना में मैंने इस प्रश्न पर विस्तार से चिन्तन भी किया है / यह पूर्ण ऐतिहासिक सत्य है कि यह प्रागम गणधरकृत हैं। मुख्य रूप से यह प्रागम गद्य रूप में है पर कहीं-कहीं बीच-बीच में नामावली व अन्य विवरण सम्बन्धी माथाएं भी आई हैं। भाष्य की दृष्टि से भी यह आगम महत्त्वपूर्ण है। कहीं-कहीं पर अलंकारों का प्रयोग हुआ है / संख्याओं के सहारे भगवान पार्श्व और उनके पूर्ववर्ती चौदहपूर्वी, अवधिज्ञानी, और विशिष्ट ज्ञानी मुनियों का भी उल्लेख है, जो इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। तुलनात्मक अध्ययन समवायांगसूत्र में विभिन्न विषयों का जितना अधिक संकलन हा है, उतना विषयों की दृष्टि से संकलन अन्य आगमों में कम हुआ है। भगवती सूत्र विषय बहल है तो आकार की दृष्टि से भी विराट् है। समवायांग सुत्र आकार की दृष्टि से बहत ही छोटा है। जैसे विष्ण मुनि ने तीन पैर से विराट विश्व को नाप लिया था, वैसे ही समवायांग की स्थिति है। यदि हम समवायांग सूत्र में आये हुये विषयों की तुलना अन्य आगम साहित्य से करें तो सहज ही यह ज्ञात होगा कि व्यवहार सूत्र में यथार्थ ही कहा गया है कि स्थानांग और समवायांग का ज्ञाता ही आचार्य और उपाध्याय जैसे गौरवपूर्ण पद को धारण कर सकता है क्योंकि स्थानांग और समावयांग में उन सभी विषयों की संक्षेप में चर्चाएँ पा गयी हैं, आचार्य व उपाध्याय पद के लिए जिनका जानना अत्यधिक आवश्यक है। संक्षेप में यों कहा जा सकता है कि जिनवाणी रूपी विराट सागर को समवायांग रूपी गागर में भर दिया गया है। यही कारण है कि अन्य आगम साहित्य में इस की स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनाई देती है। अतः हम यहां पर बहुत ही संक्षेप में अन्य आगमों के आलोक में समवायांगगत विषयों की तुलना कर रहे हैं। 227. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वितीय वक्षस्कार में पन्द्रह कुलकर, दिगम्बर ग्रन्थ "सिद्धान्त-संग्रह" में चौदह कुलकर कहे गए हैं। 228. ठाण-समवायधरे कपइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए गणावच्छे इयत्ताए उद्दिसित्ताए ।--व्यवहारसूत्र उद्देशक 3 [ 57 ] Jain Education International Jain Education International For Private & Personal use only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org