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________________ पर रहने के पश्चात दीक्षा लेने का वर्णन है। चौसठवें समवाय में चक्रवर्ती के बहुमूल्य 64 हारों का उल्लेख है। पैसठवें समवाय में गणधर मौर्यपूत्र ने 65 वर्ष तक गहवास में रह कर दीक्षा ग्रहण की। छयासठवें समवाय में भगवान श्रेयांस के 66 गण और 66 गणधर थे। मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति 66 सागर बताई है। सड़सठवें समवाय में एक युग में नक्षत्रमास की गणना से 67 मास बताये हैं। ६८वें समवाय में धातकीखण्ड द्वीप में चक्रवर्ती की 68 विजय, 68 राजधानियां और उत्कृष्ट 68 अरिहंत होते हैं तथा भगवान् विमल के 68 हजार श्रमण थे, यह कहा गया है। उनहत्तरवें समवाय में मानवलोक में मेरु के अतिरिक्त 69 वर्ष और 69 वर्षधर पवंत बताए हैं। सत्तरवें समवाय में एक मास और 20 रात्रि व्यतीत होने पर 70 रात्रि अवशेष रहने पर भगवान महावीर ने वर्षावास किया, इस का वर्णन है। यहां पर परम्परा से वर्षावास का अर्थ संवत्सरी किया जाता है। इकहत्तरवें समवाय में भगवान् अजित, चक्रवर्ती सागर 71 लाख पूर्व तक गृहवास में रह कर दीक्षित हुये। 72 वें समवाय में भगवान महावीर और उन के गणधर अचलभ्राता को 72 वर्ष की आयु बतायी है। 72 कलाओं का भी उल्लेख है। तिहत्तरवें समवाय में विजय नामक बलदेव, 73 लाख की आयु पूर्ण कर सिद्ध हुये। 74 वें समवाय में गणधर अग्निभूति 74 वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध हये। 75 वें समवाय में भगवान सुविधि के 75 सो केवली थे / भगवान् शीतल 75 हजार पूर्व और भगवान् शान्ति 75 हजार वर्ष गृहबास में रहे। 76 वें समवाय में विद्युत कुमार आदि भवनपति देवों के 76-76 लाख भवन बताये गये हैं। सतहत्तरवें समवाय में सम्राट भरत 77 लाख पूर्व तक कुमारावस्था में रहे। 77 राजाओं के साथ उन्होंने संयममार्ग ग्रहण किया। ७८वें समवाय में गणधर अकम्पित 78 वर्ष की आयु में सिद्ध हुये। ७९वें समवाय में छठे नरक के मध्यभाग से छ? घनोदधि के नीचे चरमान्त तक 79 हजार योजन अन्तर है। ८०वें समवाय में त्रिपृष्ठ वासुदेव 80 लाख वर्ष तक सम्राट् पद पर रहे। ८१वें समवाय में 81 सौ मन:पर्यवज्ञानी थे। ८२वें समवाय में 82 रात्रियाँ व्यतीत होने पर श्रमण भगवान महावीर का जीव गर्भान्तर में संहरण किया गया / ८३वें समवाय में भगवान् शीतल के 83 गण और 83 गणधर थे। 84 वें समवाय में भगवान ऋषभदेव की 84 लाख पूर्व की और भगवान् श्रेयांस की 84 लाख वर्ष की आयु थी। भगवान ऋषभ के 84 मण, 84 गणधर और 84 हजार श्रमण थे। ८५वें समवाय में आचारांग के 55 उद्देशन काल बताये हैं। 863 समबाय में भगवान सुविधि के 86 गण और 86 गणधर बताये हैं / भगवान् सुपार्श्व के 86 सौ वादी थे। ८७वें समवाय में ज्ञानावरणीय और अन्तराय कर्म को छोड़ कर शेष 6 कर्मों की 87 उत्तरप्रकृतियां बतायी हैं। ८८वें समवाय में प्रत्येक सूर्य और चन्द्र के 88-88 महाग्रह बताये हैं। ८९वें समवाय में तृतीय आरे के 89 पक्ष अवशेष रहने पर भगवान् ऋषभदेव के मोक्ष पधारने का उल्लेख है। और भगवान् शान्तिनाथ के 89 हजार श्रमणियाँ थीं। ९०वें समवाय में भगवान् अजित और शान्ति इन दोनों तीर्थंकरों के 90 गण और गणधर थे। ९१वें समवाय में भगवान् कुन्थु के 91 हजार अवधिज्ञानी श्रमण थे। ९२वें समवाय में गणधर इन्द्रभूति 92 वर्ष की आयु पूर्ण कर मुक्त हुये। ९३वें समवाय में भगवान् चन्द्रप्रभ के 93 गण और 93 गणधर थे। भगवान् शान्तिनाथ के 93 सो चतुदर्श पूर्वधर थे। ९४वें समवाय में भगवान् अजित के 94 सौ अवधिज्ञानी श्रमण थे। ९५वें समवाय' में भगवान् श्री पार्श्व के 95 गण और 95 गणधर थे। भगवान् कुन्थु की 95 हजार वर्ष की आयु थी। ९६वें समवाय में प्रत्येक चक्रवर्ती के 96 करोड गांव होते हैं। ९७वें समवाय में आठ कर्मों की 97 उत्तर-प्रकृतियां हैं। ९वें समवाय में रेवती व ज्येष्ठा पर्यन्त के 19 नक्षत्रों के 98 तारे हैं। ९९वें [ 53 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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