SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओर मुह दिखायी देता है। वह देवकृत अतिशय है तो दिगम्बर दृष्टि से केवलज्ञान कृत है। तीन कोट की रचना को भी देवकृत अतिशय माना गया है। पर समवायांग में चौतीस प्रतिशयों में उसका उल्लेख नहीं है। चौतीस अतिशयों का जो विभाजन प्राचार्यों ने किया है, उस के सम्बन्ध में सबल-तर्क का अभाव है कि अमुक अतिशय अमुक विभाग में क्यों दिया गया है? समवायांगसूत्र के मूल में किसी भी प्रकार का विभाजन नहीं किया गया है। यह भी स्मरण रखना चाहिये। समवायांग की भांति अंगुत्तरनिकाय (5121) में तथागत बुद्ध के पांच प्रतिशय बताये हैं-वे अर्थज्ञ होते हैं, धर्मज्ञ होते हैं, मर्यादा के ज्ञाता होते हैं, कालज्ञ होते हैं और परिषद् को जानने वाले होते हैं। पैतीसवें समवाय से सौवां समवाय : एक विश्लेषण पंतीसवें समवाय में पैंतीस सत्य वचन के अतिशय, कुन्थु, अर्हत्, दत्त वासुदेव, नन्दन बलदेव, ये पैंतीस धनुष ऊँचे थे तथा दूसरे और चौथे नरक में पैतीस लाख नारकावास हैं, यह निरूपण है। छत्तीसवें समवाय में उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीस अध्ययन, असुरेन्द्र की सुधर्मा-सभा छत्तीस योजन ऊंची भगवान महावीर की छत्तीस हजार प्रायिकाएँ, और चैत्र और आसोज में छत्तीस अंगुल पौरुषी, आदि का वर्णन है। सैतीसवें समवाय में सैतीस गणधर, सैतीस गण, अड़तीसवें समवाय में भगवान् पार्श्व की अड़तीस हजार श्रमणियाँ, उन्तालीसवें समवाय में भगवान् नमिनाथ के उन्तालीस सौ अवधिज्ञानी, चालीसवें समवाय में भगवान अरिष्टनेमि की चालीस हजार श्रमणियां थीं, प्रादि कथन है। इकतालीसवें समवाय में भगवान् नमिनाथ की 41 हजार श्रमणियाँ, बयालीसवें समवाय में नामकर्म के 42 भेद और भगवान् महावीर 42 वर्ष से कुछ अधिक श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए। तेतालीसवें समवाय में कर्मविपाक के 43 अध्ययन, चवालीसवें समवाय में ऋषिभाषित के 44 अध्ययन, पैतालीसवें समवाय में मानव क्षेत्र, सीमंतक नरकाबास, उडु विमान और सिद्धशिला, इन चारों को 45 लाख योजन विस्तार वाला बताया है। छियालीसवें समवाय में ब्राह्मीलिपि के 46 मातकाक्षर, सैतालीसवें समवाय में स्थविर अग्निभूति के 47 वर्ष तक गृहवास में रहने का वर्णन है / अड़तालीसवें समवायव में भगवान् धर्मनाथ के 48 गणों, 48 गणधरों का, उनचासवें समवाय में तेइन्द्रिय जीवों की 49 अहोरात्र की स्थिति, पचासवें समवाय में भगवान् मुनिसुव्रत की 50 हजार धमणियां थीं, आदि वर्णन किया गया है। इक्यावनवें समवाय में 1 ब्रह्मचर्य अध्ययन, 51 उद्देशनकाल और बावनवें समवाय में मोहनीय कर्म के 52 नाम बताये हैं। पनवें समवाय में भगवान महावीर के 53 साधुओं के एक वर्ष की दीक्षा के बाद अनुत्तर विमान में जाने का वर्णन है। चौवनवें समवाय में भारत और ऐरवत क्षेत्रों में क्रमश: 54-54 उत्तम पुरुष हुए हैं और भगवान अरिष्टनेमि 54 रात्रि तक छदमस्थ रहे। भगवान् अनन्तनाथ के 54 गणधर थे। पचपनवें समवाय में भगवती-मल्ली 55 हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर सिद्ध हुई। छप्पनवें समवाय में भगवान विमल के 56 गण व 56 गणघर थे / सत्तावनवें समवाय में मल्ली भगवती के 5700 मन:पर्यवज्ञानी थे। अठावनवें समवाय में ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय इन पांच कर्मों की 58 उत्तर प्रकृतियां बताई हैं। उनसठवें समवाय में चन्द्रसंवत्सर की एक ऋतु 59 अहोरात्रि की होती है। साठवें समवाय में सूर्य का 6 मुहर्त तक एक मंडल में रहने का उल्लेख है। इकसठवें समवाय में एक युग के 61 ऋतु मास बताये हैं। बासठवें समवाय में भगवान् वासुपूज्य के 62 गण और 62 गणधर बताये हैं। प्रेसठवें समवाय में भगवान् ऋषभदेव के 63 लाख पूर्व तक राज्यसिंहासन [ 52 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy