________________ की चर्चा हुई है। स्थानांग सूत्र१७० में विभिन्न स्थानों पर संयम असंयम के भेद प्रतिपादित किये हैं / वस्तुतः यतनापूर्वक प्रवृत्ति करना, अयतनापूर्वक कोई भी प्रवृत्ति नहीं करना अथवा प्रवृत्तिमात्र से निवृत्त होना तथा अपनी इन्द्रियों एवं मन पर नियंत्रण करना संयम कहलाता है। संयम के चार प्रकार--- मन, वचन, काय और उपकरण संयम / संयम के पाँच, सात, पाठ, दश प्रकार भी हैं। उसी तरह असंयम के भी प्रकार हैं ! संयम के प्रकारान्तर से सराग संयम, और वीतराग संयम, ये दो भेद भी है / उन सभी प्रकार के संयमों का विभिन्न दृष्टियों से निरूपण हुप्रा है। संयम साधना का प्राण है। संयम ऐसा सुरीला संगीत है जिसकी सुरीली स्वर-लहरियों से साधक का जीवन परमानन्द को प्राप्त करता है / प्रस्तुत समवाय में मरण के सत्तरह भेद बताये हैं / जो जीव जन्म लेता है, वह अवश्य ही मृत्यु को वरण करता है / जो फूल' खिला है वह अवश्य मुरझाता है। यह एक ज्वलंत सत्य है कि मृत्यु अवश्यभावी है / सभी महान् दार्शनिकों ने मृत्यु के सम्बंध में चिन्तन किया है। स्थानांग१७१ में-मरण के बालमरण, पण्डितमरण और बालपण्डित मरण ये तीन भेद किये हैं और तीनों के भी तीन तीन अवान्तर भेद किये हैं / भगवती१७२ में प्रावीचिमरण, अवधिमरण, प्रात्यन्तिकमरण, बालमरण, पण्डितमरण, ये पाँच प्रकार बताये हैं / उत्तराध्ययन 173 सूत्र में अकाम और सकाम मरण का वर्णन है। यहां पर मरण के सत्तरह प्रकार बताये हैं। जिसमें सभी प्रकार के मरणों का समावेश हो गया है। इस तरह सत्तरहवें समवाय में विविध विषयों का निरूपण हुआ है। अठारहवें समवाय में ब्रह्मचर्य के अठारह प्रकार, अर्हन्त अरिष्टनेमि के अठारह हजार श्रमण, तथा सक्षुद्रका व्यक्त श्रमणों के अठारह स्थान, प्राचारांग सूत्र के अठारह हजार पद ब्राह्मीलिपि के अठारह प्रकार, अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व के अठारह अधिकार, पौष व आषाढ़ मास में अठारह मुहूर्त के रात और दिन, नारकों व देवों की अठारह पल्योपम व सागरोपम की स्थिति का वर्णन और अठारह भव कर मोक्ष में जाने वाले जीवों का वर्णन है। प्रस्तुत समवाय में ब्रह्मचर्य आदि का जो निरूपण है, उसके सम्बन्ध में हम पूर्व पृष्ठों में चिन्तन कर चुके हैं। इसमें औदारिक आदि शरीरों की अपेक्षा से उसके विभिन्न प्रकार बताये हैं। भगवान् अरिष्टनेमि के अठारह हजार श्रमणों का उल्लेख ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है / 574 कर्मयोगी श्रीकृष्ण को इतिहासकारों ने ऐतिहासिक पुरुष माना है। इसलिए उस युग में हुए भगवान् अरिष्टनेमि को भी ऐतिहासिक पुरुष मानने में कोई बाधा नहीं है। ब्राह्मीलिपि के लिए ज्ञातासूत्र की प्रस्तावना देखिए / 175 इस प्रकार अठारहवें समवाय में सामग्नी का संकलन हुअा है। 170. स्थानांग सूत्र-४२९, 368, 521, 614, 715, 430 : 72, 310, 428, 517, 647, 709 आदि 171. स्थानांगसूत्र--सूत्र 222 172. भगवती सूत्र-शतक-१३, उद्दे. 7, सू. 496 173. उत्तराध्ययन सूत्र अ-५ 174. भगवान् अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण--एक अनुशीलन 175. ज्ञातासूत्र की प्रस्तावना, पृष्ठ--२२ से 24 तक [44 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org