________________ अंकलंक 37 विद्यानन्दी,१३८ शिवकोटि,१३६ रविषेण,१४. जटासिंह नन्दी,१४१ जिनसेन१४. पद्मनन्दी१४३ देवसेन, 144 अमृतचन्द्र 145 आदि ने श्रावकों के व्रतों के सम्बन्ध में अवश्य लिखा है, पर प्रतिमाओं के सम्बन्ध में ये मौन रहे हैं। दूसरी परम्परा ऐसे प्राचार्यों की है जिन्होंने केवल प्रतिमाओं का उल्लेख ही नहीं किया है किन्तु का विस्तार से विवेचन भी किया है। उनमें प्राचार्य समन्तभद्र 146 सोमदेव,१४७ अमितगति,१४८ वसुनन्दी,१४६ पण्डित आशाधर,१५० मेधावी,१५१ सकलकीर्ति,१५२ आदि के नाम लिए जा सकते हैं। जिस श्रावक को नवतत्त्व की अच्छी तरह से जानकारी हो, वह प्रतिमा धारण कर सकता है। नवतत्त्व की बिना जानकारी के प्रतिमाओं का सही पालन नहीं हो सकता। कितने ही विचारकों का यह अभिमत है कि प्रथम प्रतिमा में एक दिन उपवास और दूसरे दिन पारणा, द्वितीय प्रतिमा में बेले-बेले पारणा इसी तरह तेले-तेले, चोले-चोले से लेकर ग्यारह तक तप कर पारणा किया जाये। पर उन विचारकों का कथन किसी पागम और परवर्ती ग्रन्थों से प्रमाणित नहीं है। उपासकदशांग सूत्र में आनन्द प्रादि श्रावकों ने प्रतिमाओं के प्राराधन के समय तप अवश्य किया था। पर इतना ही तप करना चाहिए, इसका स्पष्ट निर्देश नहीं है। कितने ही विचारक यह भी मानते हैं कि वर्तमान में कोई भी श्रावक प्रतिमाओं की आराधना नहीं कर सकता। जैसे भिक्षु प्रतिमाओं का विच्छेद हो गया वैसे ही श्रावक प्रतिमाओं का विच्छेद हो गया है। उन विचारकों की बात चिन्तनीय है / प्रतिमाओं के साथ अनशन तप की अनिवार्य शर्त ही सम्भवतः इस विचार का आधार हो। दिगम्बर परम्परा के अनुमार श्रावक-प्रतिमाओं का पालन यावज्जीवन किया जाता है, श्वेताम्बर परम्परा में उनकी कालमर्यादा एक, दो यावत् ग्यारह मास की नियत है / दिगम्बर परम्परा में प्राज भी प्रतिमाधारी श्रावक हैं / इस तरह ग्यारहवें समवाय में विविध-विषयों पर विचार प्रस्तुत किए गये हैं। 137. तत्त्वार्थ राजवार्तिक 132. तत्त्वार्थसूत्र श्लोकवार्तिक 139. रत्नमाला 140. पद्मचरित 141. वरांगचरित 142. हरिवंशपुराण 143. पंचविंशतिका 144. भावसंग्रह (प्राकृत) 145. पुरुषार्थसिद्धय पाय 146. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 147. उपासकाध्ययन 148. श्रावकाचार 149. श्रावकाचार 150. सागारधर्मामृत 151. धर्मसंग्रह श्रावकाचार 152. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार [39] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org