________________ ग्यारहवां समवाय : एक अनुशीलन ग्यारहवें समवाय में ग्यारह उपासक प्रतिमाएँ, भगवान महावीर के ग्यारह गणधर, मूल नक्षत्र के ग्यारह तारे, प्रैवेयक, तथा नारकों व देवों की ग्यारह पल्योपम व ग्यारह सागरोपम की स्थिति तथा ग्यारह भव कर मोक्ष में जाने वालों का वर्णन है। प्रस्तुत समवाय में सर्वप्रथम श्रावक-प्रतिमाओं का उल्लेख है / प्रतिमा का अर्थ है प्रतिज्ञा-विशेष, व्रतविशेष, तप-विशेष, और अभिग्रह-विशेष 131 / श्रावक द्वादश व्रतों को ग्रहण करने के पश्चात् प्रतिमाओं को धारण करता है। प्रतिमाओं की संख्या, क्रम, व नामों के सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों में स्वरूप अन्तर दिखाई देता है। पर वह अन्तर नगण्य है। समवायांग की तरह उपासकदशांग१३ व दशाश्रुतस्कन्ध 133 में भी इनके नाम मिलते हैं। वे इस प्रकार हैं-१ दर्शन, 2 व्रत, 3 सामायिक, 4 पौषधोपवास, 5 नियम, 6 ब्रह्मचर्य, 7 सचित्त-त्याग, 8 प्रारम्भ त्याग, 9 प्रेष्य परित्याग, 10 उद्दिष्ट त्याग और 11 श्रमणभूत ! आचार्य हरिभद्र 134 ने पांचवी प्रतिमा का नियम के स्थान पर केवल 'स्थान' का उल्लेख किया है। दिगम्बर परम्परा के वसुनन्दी श्रावकाचार प्रभृति ग्रन्थों में दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, सचित्त त्याग, रात्रिभुक्ति त्याग, ब्रह्मचर्य, प्रारम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग एवं उद्दिष्टत्याग इन ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन है। स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा 34 में सम्यग्दृष्टिनामक एक और प्रतिमा मिलाकर बारह प्रतिमाओं का उल्लेख है। दोनों ही परम्पराओं में प्रथम चार प्रतिमाओं के नाम एक सदृश हैं / सचित्तत्याग का क्रम दिगम्बर परम्परा में पाँचवां है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा में सातवाँ है। दिगम्बर परम्परा में रात्रिभक्तित्याग को एक स्वतन्त्र प्रतिमा गिना है, जबकि श्वेताम्बर परम्परा में पांचवीं प्रतिमा-नियम में उसका समावेश हो जाता है। दिगम्बर परम्परा में अनुमति त्याग का दशवी प्रतिमा के रूप में उल्लेख है, श्वेताम्बर परम्परा में उद्दिष्ट त्याग में इस का समावेश हो जाता है। क्योंकि इस प्रतिमा में श्रावक उद्दिष्ट भक्त ग्रहण न करने के साथ अन्य प्रारम्भ का भी समर्थन नहीं करता / श्वेताम्बर परम्परा में जो श्रमणभूत प्रतिमा है, उसे दिगम्बर परम्परा में उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा कहा है। क्योंकि इसमें श्रावकाचार श्रमण के सदृश होता है। चिन्तनीय है कि प्राचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र में व्रत और उसके अतिचारों का निरूपण किया है। पर उन्होंने प्रतिमाओं के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं लिखा है। तत्त्वार्थ सूत्र के सभी श्वे टीकाकारों ने प्रतिमानों का कोई उल्लेख नहीं किया है / इसी तरह दिगम्बर परम्परा के पूज्यपाद 136 131. (क) प्रतिमा प्रतिपत्ति : प्रतिज्ञेति यावत्-स्थानाङ्गवृत्ति पत्र 61 (ख) प्रतिमा-प्रतिज्ञा अभिग्रहः-वही पत्र 184 (ग) जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा–पृ. 152 श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री 132. उपासकदशांग अ. 1 133. दशाश्रुत स्कन्ध 6-7 134. विशतिविशिका-१०११ 135. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा-३०५-३०६ 136. तत्त्वार्थसूत्र-सर्वार्थसिद्धि [38] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org