________________ 242] [ समवायाङ्गसूत्र आगामी काल में होंगे // 89 / / पुनः 6. श्रीचन्द्र, 7. पुष्पकेतु, 8. महाचन्द्र केवली और 9. श्रुतसागर अर्हन् होंगे / / 90 / / पुनः 10. सिद्धार्थ 11. पूर्णघोष, 12. महाघोष केवली और 13. सत्यसेन अर्हन् होंगे / / 91 // तत्पश्चात् 14. सूरसेन अर्हन् 15. महासेन केवली, 16. सर्वानन्द और 17. देवपुत्र अर्हन् होंगे / / 92 // तदनन्तर, 18. सुपार्श्व, 19. सुव्रत अर्हन, 20. सुकोशल अर्हन्, और 21. अनन्तविजय अर्हन् आगामी काल में होंगे // 93 // तदनन्तर, 22. विमल अर्हन, उनके पश्चात् 23. महाबल अर्हन और फिर 24. देवानन्द अर्हन् अागामी काल में होंगे / / 94 / / ये ऊपर कहे हुए चौवीस तीर्थंकर केवली ऐरक्त वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में धर्म-तीर्थ की देशना करने वाले होंगे // 95 / / ६७५-[जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए] बारस चक्कट्टिको भविस्संति, बारस चक्कवट्टिपियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति / नव बलदेव-वासदेवपियरो भविस्संति, नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति / नव दसारमंडला भविस्संति, उत्तिमा पुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव दुवे दुवे राम-केसवा भायरो, भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, नव पुव्वभवनामधेज्जा, णव धम्मायरिया, णव णियाणभूमीग्रो, गव णियाणकारणा आयाए एरवए आगमिस्साए भाणियन्वा / [इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सपिणी काल में] बारह चक्रवर्ती होंगे, बारह चक्रवतियों के पिता होंगे, उनकी बारह माताएं होंगी, उनके बारह स्त्रीरत्न होंगे। नौ बलदेव और वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी। नौ दशार मंडल होंगे, जो उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष यावत् सर्वाधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान दो-दो राम-केशव (बलदेव-वासुदेव) भाई-भाई होंगे। उनके नौ प्रतिशत्रु होंगे, उनके नौ पूर्व भव के नाम होंगे, उनके नौ धर्माचार्य होंगे, उनकी नौ निदान-भूमियां होंगी, निदान के नौ कारण होंगे। इसी प्रकार से आगामी उत्सर्पिणी काल में ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले बलदेवादि का मुक्ति-गमन, स्वर्ग से आगमन, मनुष्यों में उत्पत्ति और मुक्ति का भी कथन करना चाहिए। ६७६--एवं दोसु वि आगमिस्साए भाणियन्वा / इसी प्रकार भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी काल में होने वाले वासुदेव आदि का कथन करना चाहिए। ६७७-इच्चेयं एवमाहिज्जति / तं जहा-कुलगरवंसेइ य, एवं तित्थगरवंसेइ य, चक्कबट्टिवंसेइ य दसारवंसेइ वा गणधरवंसेइ य, इसिवंसेइ य, जइवंसेइ य, मुणिवंसेइ य, सुएइ वा, सुअंगेइ वा सुयसमासेइ वा, सुयखंधेइ वा समवाएइ वा, संखेइ वा समत्तमंगमक्खायं अज्झयणं ति वेमि / इस प्रकार यह अधिकृत समवायाङ्ग सूत्र अनेक प्रकार के भावों और पदार्थो का वर्णन करने के रूप से कहा गया है। जैसे—इसमें कुलकरों के वंशों का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार तीर्थंकरों के वंशों का, चक्रवतियों के वंशों का, दशार-मंडलों का, गणधरों के वंशों का, ऋषियों के वंशों का यतियों के वंशों का और मुनियों के वंशों का भी वर्णन किया गया है / परोक्षरूप से त्रिकालवर्ती समस्त अर्थों का परिज्ञान कराने से यह श्रुतज्ञान है, श्रुतरूप प्रवचन-पुरुष का अंग होने से यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org