________________ विविधविषयनिरूपण [207 [इसी प्रकार भवनवासियों, वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों, कल्पवासियों और ग्रेवेयकवासी देवों की पर्याप्तक-अपर्याप्तक काल-भावी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना चाहिए। 594- विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं बत्तीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। सम्बट्टे अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता। भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित विमानवासी देवों की स्थिति कितने काल कही गई है ? गौतम ! जघन्य स्थिति बत्तीस सागरोफ्न और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम कही गई है। सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमानों में अजघन्य-अनुत्कृष्ट (उत्कृष्ट और जघन्य के भेद से रहित) सब देवों को तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। विवेचन पाँचों अनुत्तर विमानों में भी वहाँ की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति में से अन्तर्मुहूर्त कम पर्याप्तक देवों को स्थिति जानना चाहिए / तथा सभी देवों की अपर्याप्त काल सम्बन्धी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त जाननी चाहिए। 595 -कति णं भंते ! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा ! पंच सरीरा पन्नत्ता / तं जहा-ओरालिए वेउविए आहारए तेथए कम्मए। भगवन् ! शरीर कितने कहे गये हैं ? गौतम ! शरीर पांच कहे गये हैं --औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, पाहारक शरीर, तेजस शरीर और कार्मण शरीर। ५९६–ओरालियसरीरे णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पन्नते। तं जहाएगिदिय-ओरालियसरीरे जाव गम्भवक्कं तिय मणुस्स-पंचिदिय-ओरालियसरीरे य। भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार के कहे गये हैं। गौतम ! पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—एकेन्द्रिय औदारिकशरीर, यावत् [द्वीन्द्रिय औदारिकशरीर, त्रीन्द्रिय प्रौदारिकशरीर, चतुरिन्द्रिय प्रौदारिकशरीर और पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर / इत्यादि प्रज्ञापनोक्त] गर्भजमनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीर तक जानना चाहिए। ५९७--ओरालियसरीरस्स णं भंते ? केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलप्रसंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं एवं जहा ओगाहण-संठाणे ओरालियपमाणं तह निरवसेसं [भाणियन्वं] / एवं जाव मणुस्से ति उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। भगवन् ! औदारिकशरीर बाले जीव की उत्कृष्ट शरीर-अवगाहना कितनी कही गई है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org