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________________ द्वादशाङ्ग गणिपिटक [195 अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे—मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवन्तों के पूर्वभव, देवलोक-गमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिविका, प्रवज्या, तप, भक्त (आहार) केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, तीर्थ-प्रवर्तन, संहनन, संस्थान, शरीर-उच्चता, आयु, शिष्य, गण, गणधर, आर्या, प्रवर्तिनी, चतुविध संघ का परिमाण, केवलि-जिन, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी सम्यक् मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले साधु, सिद्ध, पादपोपगत, जो जहाँ जितने भक्तों का छेदन कर उत्तम मुनिवर अन्तकृत हुए, तमोरज-समूह से विप्रमुक्त हए, अनुत्तर सिद्धिपथ को प्राप्त हुए, इन महापुरुषों का, तथा इसी प्रकार के अन्य भाव मूलप्रथमानुयोग में कहे गये हैं, वणित किये गए हैं, प्रज्ञापति किये गए हैं, प्ररूपित किये गए हैं, निर्दाशत किये गए हैं और उपदशित किये गए हैं। यह मूलप्रथमानुयोग है / 567- से कि तं गंडियाणुओगे ? [गंडियाणुओगे] अणेगविहे पण्णत्ते / तं जहा--कुलगर. गंडियानो तित्थगरगंडियाओ गणहरगंडियानो चक्कहरगंडियाओ दसारगडियानो बलदेवगंडियानो वासुदेवगंडियाओ हरिवंसगंडियानो भद्दबाहगंडियाओ तवोकम्मगंडियाओ चित्तंतरगडियाओ उस्सप्पिणीगंडियाओ ओसप्पिणीगंडियानो अमर-नर-तिरिय-निरयगइगमण-विविहपरियट्टणाणुप्रोगे, एवमाइयायो गडियाओ प्राधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जंति से तं गंडियाणुओगे। गंडिकानुयोग में क्या है ? गंडिकानुयोग अनेक प्रकार का है / जैसे--कुलकरगंडिका, तीर्थकरगंडिका, गणधरगंडिका, चक्रवर्तीगंडिका, दशा रगडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगंडिका, हरिवंशगंडिका, भद्रबाहुगंडिका, तपःकर्मगंडिका, चित्रान्तरगडिका, उत्सपिणोगडिका, अवसर्पिणी गंडिका, देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक गतियों में गमन, तथा विविध योनियों में परिवर्तनानुयोग, इत्यादि गंडिकाएँ इस गंडिकानुयोग में कहो जाती हैं, प्रज्ञापित की जाती हैं, प्ररूपित की जाती हैं, निदर्शित की जाती हैं और उपदर्शित को जातो हैं / यह गंडिकानुयोग है / ५६८-से कि तं चूलियारो ? जण्णं आइल्लाणं चउण्हं पुन्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुवाई अचूलियाई / से तं चूलियानो / यह चूलिका क्या है ? __ प्रादि के चार पूर्वो में चूलिका नामक अधिकार है। शेष दश पूर्वो में चूलिकाएँ नहीं हैं / यह चूलिका है। विवेचन -दि० शास्त्रों में दृष्टिवाद का चूलिका नामक पाँचवा भेद कहा गया है और उसके पाँच भेद बतलाए गए हैं –जलगता चूलिका, स्थलगता चूलिका, मायागता चूलिका, प्राकाशगता चूलिका और रूपगत। चूलिका / जलगता में जल-गमन, अग्निस्तम्भन, अग्निभक्षण, अग्नि-प्रवेश और अग्निपर बैठने आदि के मन्त्र-तन्त्र और तपश्चरण अादि का वर्णन है। स्थलगता में मेरु, कुलाचल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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