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________________ द्वादशाङ्गगणिपिटक] [193 8 संजूह-संयूथ (जूह), 9 संभिन्न, 10 ग्रहाच्चय, 11 सौवस्तिक, 12 नन्द्यावर्त, 13 बहुल, 14 पृष्टापृष्ट, 15 व्यावृत्त, 16 एवंभूत, 17 द्वचावत, 18 वर्तमानात्मक, 19 समभिरूढ, 20 सर्वतोभद्र, 21 पणाम (पण्णास) और 22 दुष्प्रतिग्रह / ये बाईस सूत्र स्वसमयसूत्र परिपाटी से छिन्नच्छेद-नयिक हैं। ये हो बाईस सूत्र प्राजोविकसूत्रपरिपाटी से अच्छिन्नच्छेदनयिक हैं। ये ही बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्रपरिपाटी से त्रिकनयिक हैं और ये हो बाईस सूत्र स्वसमय सूत्रपरिपाटी से चतुष्कनयिक हैं / इस प्रकार ये सब पूर्वापर भेद मिलकर अठासी सूत्र होते हैं, ऐसा कहा गया है / यह सूत्र नाम का दूसरा भेद है / विवेचन--जो नय सूत्र को छिन्न अर्थात् भेद से स्वीकार करे, वह छिन्नच्छेदनय कहलाता है। जैसे---'धम्मो मंगलमुक्किट्ठ' इत्यादि श्लोक सूत्र और अर्थ की अपेक्षा अपने अर्थ के प्रतिपादन करने में किसी दूसरे श्लोक को अपेक्षा नहीं रखता है। किन्तु जो श्लोक अपने अर्थ के प्रतिपादन में ग्रागे या पीछे के श्लोक की अपेक्षा रखता है, वह अच्छिन्नच्छेदनयिक कहलाता है / गोशालक आदि द्रव्याथिक, पर्यायाथिक और उभयाथिक इन तीन नयों को मानते हैं, अतः उन्हें त्रिकनयिक कहा गया है। किन्तु जो संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द नय इन चार नयों को मानते हैं, उन्हें चतुष्कनयिक कहते हैं / त्रिकनयिक वाले सभी पदार्थों का निरूपण सत्, असत् और उभयात्मक रूप से करते हैं। किन्तु चतुष्कनयिक वाले उक्त चार नयों से सर्व पदार्थों का निरूपण करते हैं। 563 –से कि तं पुवयं ? पुब्वगयं चउद्दसविहं पन्नत्तं / तं जहा उप्पायपुव्वं अग्गेणीयं वीरियं अस्थिनस्थिप्पवायं नाणप्पवायं सच्चप्पवायं प्रायप्पवायं कम्मप्पवायं पच्चवखाणप्पवायं विज्जाणुप्पवायं अबंझं पाणाऊ किरियाविसालं लोग बिन्दुसारं 14 / यह पूर्वगत क्या है इसमें क्या वर्णन है ? पूर्वगत चौदह प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-१ उत्पादपूर्व, 2 अग्रायणीयपूर्व, 3 वीर्यप्रवादपूर्व, 4 अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व, 5 ज्ञानप्रवादपूर्व, 6 सत्यप्रवादपूर्व, 7 अात्मप्रवादपूर्व, 8 कर्मप्रवादपूर्व, 9 प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व, 10 विद्यानुप्रवादपूर्व, 11 प्रबन्ध्यपूर्व, 12 प्राणायुपूर्व, 13 क्रियाविशाल पूर्व और 14 लोकविन्दुसारपूर्व / 564 --उप्पायपुवस्स णं दस वत्थू पण्णत्ता। चत्तारि चूलियावत्थू पण्णत्ता। अम्गेणियस्स णं पुवस्स चोद्दस पत्थू , वारस चूलियावत्थू पण्णत्ता। वीरियप्पवायस्स णं पुवस्स अट्ठ वत्थू अट्ठ चुलियावत्थू पण्णत्ता। अस्थिणस्थिप्पवायस्स णं पुन्बस्स अट्ठारस वत्यू दस चूलियावत्थू पण्णत्ता / पवायस्स णं पृथ्वस्स बारस वत्थ पण्णत्ता। सच्चप्पवायस्स णं पृब्वस्स दो बत्थ पण्णत्ता / आयप्पवायस्स णं पुवस्स सोलस वत्थू पण्णत्ता। कम्मप्पवायपुवस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता। पच्चक्खाणस्स णं पुचस्स वीसं वत्थू पण्णत्ता। विज्जाणुष्पवायस्स णं पुवस्स पन्नरस वत्थू पण्णत्ता। अबंझस्स णं पुवस्स बारस वत्थू पण्णत्ता। पाणाउस्स गं पुव्वस्स तेरस वत्थू पण्णत्ता। किरियाविसालस्स णं पुवस्स तीसं बत्थू पण्णता / लोगबिन्दुसारस्स णं पुष्वस्स पणवीसं वत्थू पण्णत्ता। उत्पादपूर्व की दश वस्तु (अधिकार) हैं और चार चूलिकावस्तु है / अग्रायणीय पूर्व की चौदह वस्तु और बारह चूलिकावस्तु हैं / वीर्यप्रवादपूर्व की आठ वस्तु और पाठ चूलिकावस्तु हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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