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________________ अनेकोत्तरिका-वृद्धि-समवाय] [163 सभी वक्षार पर्वत सीता-सीतोदा महानदियों के और मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गभूति उद्वेध वाले कहे गये हैं। सभी वर्षधर कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन विष्कम्भ वाले कहे गये हैं / 467 --उसमे णं अरहा कोसलिए पंच धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था। भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी पंचधणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / कौशलिक ऋषभ अर्हत् पाँच सौ धनुष ऊंचे थे। चातुरन्तचक्रवर्ती राजा भरत पाँच सौ धनुष ऊंचे थे। 468. सोमणस-गंधमादण-विज्जप्पभ-मालवंताणं वक्खारपव्वयाणं मंदरपव्वयंतेणं पंच पंच जोयणसयाई उडढं उच्चत्तेणं, पंच पंच गाउयसयाई उव्वेहेणं पण्णता। सब्वे विणं वक्खारपध्वयकडा हरि-हरिस्सहकडवज्जा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले पंच पंच जोयणसयाई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता। सव्वे वि णं णंदणकूडा बलकूडवज्जा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं, मूले पंच पंच जोयणसयाई प्रायामविक्खंभेणं पण्णता / सौमनस, गन्धमादन, विद्युत्प्रभ और मालवन्त ये चारों वक्षार पर्वत मन्दर पर्वत के समीप पाँच-पांच सौ योजन ऊंचे और पाँच-पाँच सौ गव्यूति उद्वेधवाले हैं / हरि और हरिस्सह कूट को छोड़ कर शेष सभी बक्षार पर्वतकूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन पायाम-विष्कम्भ वाले कहे गये हैं / बलकूट को छोड़ कर सभी नन्दनवन के कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे और मूल में पाँच-पाँच सौ योजन अायाम-विष्कम्भ वाले कहे गये हैं। 469- सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु विमाणा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता / 500 / सौधर्म और ईशान इन दोनों कल्पों में सभी विमान पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं। 470 -सणंकुमार-माहिदेसु कप्पेसु विमाणा छजोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। चुल्लाहमवंतकूडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ चुल्लाहिमवंतस्स वासहरपन्वयस्स समधरणितले एस गं छजोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं सिहरोकूडस्स वि / सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में विमान छह सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं। क्षुल्लक हिमवन्त कूट के उपरिम चरमान्त से क्षुल्लक हिमवन्त वर्षधर पर्वत का समधरणोतल छह सो योजन अन्तर वाला है / इसी प्रकार शिखरी कूट का भो अन्तर जानना चाहिए। विवेचन --समभूमि तल से क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरो वर्षधर पर्वत सौ-सौ योजन ऊंचे हैं और उनके हिमकट और शिखरी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊंचे हैं, अत: उक्त कूटों के ऊपरी भाग से उक्त दोनों ही वर्षधर पर्वतों के समभूमि का सूत्रोक्त छह-छह सौ योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है। 471- पासस्स णं अरहनो छसया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिआणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था / अभिचंदे णं कुलगरे छत्रणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / वासुपुज्जे णं अरिहा छहिं पुरिससएहिं सद्धि मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए। 600 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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