________________ 162] [समवायाङ्गसूत्र श्रमण भगवान् महावीर के संघ में तीन सौ चतुर्दशपूर्वी मुनि थे। पाँच सौ धनुष की अवगाहनावाले चरमशरीरी सिद्धि को प्राप्त पुरुषों (सिद्धों) के जीवप्रदेशों की अवगाहना कुछ अधिक तीन सौ धनुष की होती है। ४६०-पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्ध टुसयाई चोदसपुटवीणं संपया होत्था / अभिनंदणे णं अरहा अधुढाई धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था 350 / पुरुषादानीय पार्श्व अर्हन के साढ़े तीन सौ चतुर्दशपूत्रियों की सम्पदा थी। अभिनन्दन अर्हन् साढ़े तीन सौ धनुष ऊंचे थे। ४६१–संभवे णं अरहा चत्तारि धणुसपाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। संभव अर्हत् चार सौ धनुष ऊंचे थे। 462 –सव्वे वि णं निसढनीलवंता वासहरपध्वया चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं [पण्णता]। चत्तारि चत्तारि गाउयसयाई उन्हेणं पण्णत्ता ! सव्वे वि णं वक्खारपव्वया 'णिसढनीलवंतवासहरपव्वयंतेणं' चत्तारि चत्तारि जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं चत्तारि चत्तारि गाउयसयाइं उन्हेणं पण्णता।। सभी निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वत चार-चार सौ योजन ऊंचे तथा चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध (गहराई) वाले हैं। सभी वक्षार पर्वत निषध और नीलवन्त वर्षधर पर्वतों के समीप चार-चार सौ योजन ऊंचे और चार-चार सौ गव्यूति उद्वेध वाले कहे गये हैं। ४६३–प्राणय-पाणएसु दोसु कप्पेसु चत्तारि विमाणसया पण्णत्ता। अानत और प्राणत इन दो कल्पों में दोनों के मिलाकर चार सौ विमान कहे गये हैं। ४६४–समणस्स णं भगवओ महावीरस्स चत्तारि सया वाईणं सदेव-मणुयासुरंमि लोगमिवाए अपराजियाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था 400 / श्रमण भगवान महावीर के चार सौ अपराजित वादियों की उत्कृष्ट वादिसम्पदा थी। वे वादी देव, मनुष्य और असुरों में से भी बाद में पराजित होने वाले नहीं थे। ४६५--अजिते णं अरहा अद्धपंचमाइं धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। सगरे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी अद्धपंचमाई धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था 450 / अजित अईत साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे। चातुरन्त चक्रवर्ती सगर राजा भी साढ़े चार सौ धनुष ऊंचे थे। ४६६--सब्वे वि णं वक्खारपव्वया सीधा-सीप्रोग्रामो महानईओ मंदरपव्वयंते णं पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पंच पंच गाउयसयाई उब्वहेणं पण्णताओ। सव्वे वि णं वासहरकडा पंच पंच जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / भूले पंच पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं पण्णता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org