________________ 160] [समवायाङ्गसूत्र ४४८—सयभिसया नक्खत्ते एक्कसयतारे पण्णत्ते। शतभिषक् नक्षत्र के एक सौ तारे होते हैं / ४४९-सुविही पुप्फदंते णं अरहा एगं धणुसयं उड्डे उच्चत्तेणं होत्था। पासे णं अरहा पुरिसादाणीए एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खपहीणे / एवं थेरे वि अज्जसुहम्मे / ___सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् सौ धनुष ऊंचे थे। पुरुषादानीय पार्श्व अर्हत् एक सौ वर्ष की समग्र प्रायु भोग कर सिद्ध, बुद, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए। इसी प्रकार स्थविर आर्य सुधर्मा भी सौ वर्ष की सर्व प्रायु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त हो सर्व दुःखों से रहित हुए। 450 सव्वे वि णं दोहवेयपव्वया एगमेगं गाउयसयं उड्ड उच्चत्तेणं पण्णता। सब्वेविणं चुल्लहिमवंत-सिहरीवासहरपब्वया एगमेगं जोयणसयं उड्डे उच्चत्तणं पण्णत्ता। एगमेगं गाउयसयं उध्वेहेणं पण्णत्ता / सव्वे वि णं कंचणगपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णता। एगमेगं गाउयसयं उन्वेहेणं पण्णत्ता। एगमेगं जोयणसयं मूले विक्खंभेणं पण्णत्ता। सभी दीर्घ वैताढय पर्वत एक-एक सौ गव्यूति (कोश) ऊंचे कहे गये हैं। सभी क्षुल्लक हिमवन्त और शिखरी वर्षधर पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे हैं। तथा ये सभी वर्षधर पर्वत सौ-सौ गव्यूति उद्वेध (भूमि में अवगाह) वाले हैं। सभी कांचनक पर्वत एक-एक सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं / तथा वे सौ-सौ गव्यूति उद्वेध वाले और मूल में एक-एक सौ योजन विष्कम्भवाले हैं। // शतस्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org