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________________ अष्टानवसिस्थानक समवाय] [ 157 मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्तभाग से गोस्तुभ आवास पर्वत का पूर्वी चरमान्त भाग अट्ठानवै हजार योजन अन्तरवाला कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में अवस्थित आवास पर्वतों का अन्तर जानना चाहिए। विवेचन-सत्तानवै वें स्थान के सूत्र में प्रतिपादित अन्तर में गोस्तुभ प्रावास-पर्वत के एक हजार योजन विष्कम्भ को मिला देने पर अट्ठानवै हजार योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है। ४४१--दाहिणभरहस्स गंधणुपिठे अट्टाणउइ जोयणसयाई किंचूणाई आयामेणं पण्णते / दक्षिण भरतक्षेत्र का धनु :पृष्ठ कुछ कम अट्ठानवै सौ (9800) योजन अायाम (लम्बाई) की अपेक्षा कहा गया है। ४४२-उत्तराओ कट्ठाओ सरिए पढम छम्मासं अयमाणे एगूणपन्नासतिमे मंडलगते अट्ठाणउइ एकसटिठभागे महत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवडढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिवद्भित्ता णं सरिए चार चरइ दक्खिणाश्रो णं कट्ठामो सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे एगणपन्नासइमे मंडलगते अट्ठाणउइ एकसट्ठिभाए मुहुत्तस्स रयणिखित्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुड्वेत्ता णं सूरिए चारं चरइ। उत्तर दिशा से सूर्य प्रथम छह मास दक्षिण की ओर आता हुआ उनपचासवें मंडल के ऊपर आकर मुहूर्त के इकसठिये अट्ठान भाग (1) दिवस क्षेत्र (दिन) के घटाकर और रजनी क्षेत्र (रात) के बढ़ाकर संचार करता है / इसी प्रकार दक्षिण दिशा से सूर्य दूसरे छह मास उत्तर की ओर जाता हुया उनपचासवें मंडल के ऊपर आकर मुहूर्त के अट्ठानवे इकसठ भाग (FF) रजनी क्षेत्र (रात) के घटाकर और दिवस क्षेत्र (दिन) के बढ़ाकर संचार करता है / विवेचनसूर्य के एक एक मंडल में संचार करने पर मुहूर्त के इकसठ भागों में से दो भाग प्रमाण दिन की वद्धि या रात की हानि होती है। अत: उनपचासवें मंडल में सूर्य के संचार करने पर मुहूर्त के (4942%D85) अट्ठानवै इकसठ भाग की वृद्धि और हानि सिद्ध हो जाती है। सूर्य चाहे उत्तर से दक्षिण की ओर संचार करे और चाहे दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर संचार करे, परन्तु उनपचासवें मंडल पर परिभ्रमण के समय दिन या रात की उक्त वृद्धि या हानि ही रहेगी। ४४३-रेवई-पढमजेट्टापज्जवसाणाणं एगूणवीसाए नक्खत्ताणं अट्ठाणउइ ताराओ तारग्गेणं पण्णत्तायो। रेवती से लेकर ज्येष्ठा तक के उन्नीस नक्षत्रों के तारे अट्ठानवे हैं / विवेचन--ज्योतिषशास्त्र के अनुसार रेवती नक्षत्र बत्तीस तारावाला है, अश्विनी तीन तारा वाला है, भरणी तीन तारा वाला है, कृत्तिका छह तारा वाला है, रोहिणी पाँच तारावाला है, मृगशिर तीन तारावाला है, पार्दा एक तारावाला है, पुनर्वसु पाँच तारावाला है, पुष्य तीन तारा वाला है, अश्लेषा छह तारावाला है, मघा सात तारावाला है, पूर्वाफाल्गुनी दो तारावाला है, उत्तराफाल्गुनी दो तारा वाला है, हस्त पाँच तारावाला है, चित्रा एक तारा वाला है, स्वाति एक तारावाला है, विशाखा एक तारावाला है. अनुराधा चार तारा वाला है, और ज्येष्ठा नक्षत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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