________________ 156] [समवायाङ्गसूत्र सप्तनवतिस्थानक-समवाय ४३६-मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथभस्स णं आवासपब्वयस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं सत्ताणउइ जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं चउदिसि पि। मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग से गोस्तुभ आवास-पर्वत का पश्चिमी चरमान्त भाग सत्तानव हजार योजन अन्तर वाला कहा गया है / इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना चाहिए। विवेचन-मेरु पर्वत के पश्चिमी भाग से जम्बूद्वीप का पूर्वी भाग पचपन हजार योजन है और उससे गोस्तुभ पर्वत का पश्चिमी भाग वियालीस हजार योजन दूर है। अतः चारों आवास पर्वतों का सूत्रोक्त सत्तानवै हजार योजन का अन्तर सिद्ध हो जाता है / ४३७–अढण्हं कम्मपगडीणं सत्ताणउई उत्तरपगडीग्रो पण्णत्ताओ। आठों कर्मों की उत्तर प्रकृतियां सत्तानवै (5+9+2+2+4+42+2+5= 97) कही गई हैं। ४३८-हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कवट्टी देसूणाई सत्ताणउई वाससयाई प्रगारमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए। चातुरन्तचक्रवर्ती हरिषेण राजा कुछ कम सत्तानवै सौ (9700) वर्ष अगार-वास में रहकर मुडित हो अगार से अनगारिता में प्रवजित हुए। // सप्तनवतिस्थानक समवाय समाप्त / अष्टानवतिस्थानक-समवाय ४३९--नंदणवणस्स णं उरिल्लाप्रो चरमंताओ, पंडुयवणस्स हेढिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउइजोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णते। नन्दनवन के ऊपरी चरमान्त भाग से पांडुक वन के निचले चरमान्त भाग का अन्तर अट्ठानवे हजार योजन है। विवेचन-नन्दन वन समभूमि तल से पांच सौ योजन ऊंचाई पर अवस्थित है और उसकी आठों दिशाओं में अवस्थित कूट भी पाँच पाँच सौ योजन ऊंचे हैं, अत: दोनों मिलकर एक हजार योजन ऊंचाई नन्दनवन की हो जाती है / मेरु की ऊंचाई समभूमि भाग से निन्यानवै हजार योजन है, उसमें से उक्त एक हजार के घटा देने पर सूत्रोक्त अट्ठान वै हजार का अन्तर सिद्ध हो जाता है। ४४०-मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पुरच्छिमिल्ले चरमंते एस णं अट्ठाणउइ जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं चउदिसि पि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org