________________ षण्णवतिस्थानक समवाय] [155 कुन्थु अर्हत् पंचानवै हजार वर्ष की परमायु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए / स्थविर मौर्यपुत्र पंचानवै वर्ष की सर्व आयु भोग कर सिद्ध, बुद्ध, कर्म-मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। ॥पञ्चनवतिस्थानक समवाय समाप्त / / षण्णवतिस्थानक-समवाय ४३२-एगमेगस्स णं रन्नो चाउरतचक्कवट्टिस्स छण्णउई छण्णउई गामकोडीनो होत्था। प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के (राज्य में) छयानवै-छयानवै करोड़ ग्राम थे। ४३३--वायुकुमाराणं छण्णउई भवणावाससयसहस्सा पण्णता। वायुकुमार देवों के छयानवै लाख प्रावास (भवन) कहे गये हैं। ४३४–ववहारिए णं दंडे छण्णउई अंगुलाई अंगुलमाणेणं / एवं धणू नालिया जुगे अक्खे मुसले व्यावहारिक दण्ड अंगुल के माप से छयानवे अंगुल-प्रमाण होता है। इसी प्रकार धनुष, नालिका, युग, अक्ष और मूशल भी जानना चाहिए। विवेचन-अंगुल दो प्रकार का है-व्यावहारिक और अव्यावहारिक / जिससे हस्त, धनुष, गव्यूति ग्रादि के नापने का व्यवहार किया जाता है, वह व्यावहारिक अंगुल कहा जाता है। अव्यावहारिक अंगुल प्रत्येक मनुष्य के अंगुल-मान की अपेक्षा छोटा-बड़ा भी होता है। उसको यहाँ विवक्षा नहीं की गई है। चौबीस अंगुल का एक हाथ होता है और चार हाथ का एक दण्ड होता है। इस प्रकार (24 4 4 = 96) एक दण्ड छयानवै अंगुल प्रमाण होता है। इसी प्रकार धनुष आदि भी छयानवै-छयानवै अंगुल प्रमाण होते हैं। ४३५.--अभितरओ प्राइमुहुत्ते छण्णउइ अंगुलच्छाए पण्णत्ते / आभ्यन्तर मण्डल पर सूर्य के संचार करते समय आदि (प्रथम) मुहूर्त छयानवै अंगुल की छाया वाला कहा गया है। ॥षण्णवतिस्थानक समवाय समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org