________________ पञ्चसप्ततिस्थानक समवाय] [135 निषध वर्षधर पर्वत के तिगिंछ द्रह से सीतोदा महानदी कुछ अधिक चौहत्तर सौ (7400) योजन उत्तराभिमुखी बह कर महान् घटमुख से प्रवेश कर वज्रमयी, चार योजन लम्बी और पचास योजन चौड़ो जिह्विका से निकल कर मुक्तावलिहार के प्राकारवाले प्रवाह से भारी शब्द के साथ वज्रतल वाले कुण्ड में गिरती है। ___ इसी प्रकार सीता नदी भी नीलवन्त वर्षधर पर्वत के केशरी द्रह से कुछ अधिक चौहत्तर सौ (7400) योजन दक्षिणाभिमुखी बह कर महान् घटमुख से प्रवेश कर वज्रमयी चार योजन लम्बी पचास योजन चौड़ी जिविका से निकल कर मुक्तावलिहार के प्राकारवाले प्रवाह से भारी शब्द के साथ वज्रतल वाले कुण्ड में गिरती है। ३६२-चउत्थवज्जासु छसु पुढवीसु चोवरि निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। चौथी को छोड़कर शेष छह पृथिवियों में चौहत्तर (30+25+ 15+3+1-74) लाख नारकावास कहे गये हैं। // चतुःसप्ततिस्थानक समवाय समाप्त // पञ्चसप्ततिस्थानक-समवाय ३६३---सुविहिस्स णं पुष्पदंतस्स अरहओ पन्नत्तरि जिणसया होत्था / सोतले णं अरहा पन्नत्तरि पुदवसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए। संती णं अरहा पन्नतरिवाससहस्साई अगारवासमझे बसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए / सुविधि पुष्पदन्त अर्हन् के संघ में पचहत्तर सौ (7500) केवलिजिन थे। शीतल अर्हन् पहचत्तर हजार पूर्व वर्ष अगारवास में रह कर मुडित हो अगार से अनगारिता में प्रवजित हुए। शान्ति अर्हन् पचहत्तर हजार वर्ष अगारवास में रह कर मुडित हो अगार से अनगारिता में प्रजित हुए। ॥पञ्चसप्ततिस्थानक समवाय समाप्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org