________________ त्रिपञ्चाशत्स्थानक समवाय ] [117 में से बयालीस हजार योजन कम कर देने पर उनके बीच में बावन हजार योजनों का अन्तर रह जाता है। यही बात इस सूत्र में कही गई है / २८६-माणावरणिज्जस्स नामस्स अंतरायस्स एतेसि णं तिण्हं कम्मपगडीणं वावन्नं उत्तरपयडीओ पण्णत्ताओ। ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय इन तीनों कर्मप्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियां बावन (5+42+5= 52) कही गई हैं। 287- सोहम्म-सणंकुमार-माहिदेसु तिसु कप्पेसु वावन्नं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। सौधर्म, सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन कल्पों में (32- 12+8=52) बावन लाख विमानावास कहे गये हैं। द्विपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त / त्रिपञ्चाशत्स्थानक-समवाय २८८--देवकुरु-उत्तरकुरुयाओ णं जीवाओ तेवन्नं तेवन्न जोयणसहस्साई साइरेगाई आयामेणं पण्णत्ताओ। महाहिमवंत-रुप्पोणं वासहरपव्वयाणं जीवाओ तेवन्नं तेवन्नं जोयणसहस्साई नव य एगत्तीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसईभागे जोयणस्स आयामेणं पण्णताओ / देवकुरु और उत्तरकुरु की जीवाएं तिरेपन-तिरेपन हजार योजन से कुछ अधिक लम्बी कही गई हैं। महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वतों की जीवाएं तिरेपन-तिरेपन हजार नौ सौ इकत्तीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग प्रमाण (539311) लम्बी कही गई हैं। २८९-समणस्स णं भगवओ महावीरस्स तेवन्तं अणगारा संवच्छरपरियाया पंचसु अणुत्तरेसु महइमहालएसु महाविमाणेसु देवत्ताए उववन्ना। श्रमण भगवान महावीर के तिरेपन अनगार एक वर्ष श्रमणपर्याय पालकर महान-विस्तीर्ण एवं अत्यन्त सुखमय पाँच अनुत्तर महाविमानों में देवरूप में उत्पन्न हुए / २९०-संमुच्छिमउरपरिसप्पाणं उक्कोसेणं तेवन्नं वाससहस्सा ठिई पण्णता। सम्मूच्छिम उरपरिसर्प जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तिरेपन हजार वर्ष कही गई है / // त्रिपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org