________________ 104] [समवायाङ्गसूत्र 8. महार्थत्व-वचनों का महान् अर्थवाला होना। 9. अव्याहतपौर्वापर्यत्व–पूर्वापर अविरोधी वाक्य वाला होना। 10. शिष्टत्व-वक्ता की शिष्टता के सूचक होना। 11. असन्दिग्धत्व-सन्देह-रहित निश्चित अर्थ के प्रतिपादक होना। 12. अपहृतान्योत्तरत्व—अन्य पुरुष के दूषणों को दूर करने वाला होना / 13. हृदयग्राहित्व--श्रोता के हृदय-ग्राही–मनोहर वचन होना। 14. देश-कालाव्ययीतत्व-देश-काल के अनुकूल अवसरोचित वचन होना / 15. तत्त्वानुरूपत्व-विवक्षित वस्तुस्वरूप के अनुरूप वचन होना / 16. अप्रकीर्ण प्रसृतत्व-निरर्थक विस्तार से रहित सुसम्बद्ध वचन होना / 17. अन्योन्य प्रगृहीत--परस्पर अपेक्षा रखने वाले पदों और वाक्यों से युक्त होना ! 18. अभिजातत्व-वक्ता की कुलीनता और शालीनता के सूचक होना। 19. अतिस्निग्ध मधुरत्व-अत्यन्त स्नेह से भरे हुए मधुरता-मिष्टता युक्त होना / 20. अपरमर्मवेधित्व--दूसरे के मर्म-वेधी न होना। 11. अर्थधर्माभ्यासानपेतत्व–अर्थ और धर्म के अनुकूल होना। 22. उदारत्व-तुच्छता-रहित और उदारता-युक्त होना / 23. परनिन्दात्मोत्कर्षविप्रयुक्तत्व- पराई-निन्दा और अपनी प्रशंसा से रहित होना ! 24. उपगतश्लाघत्व-जिन्हें सुन कर लोग प्रशंसा करें, ऐसे वचन होना / 25. अनपनीतत्व-काल, कारक, लिंग-व्यत्यय प्रादि व्याकरण के दोषों से रहित होना / 26. उत्पादिताच्छिन्न कौतूहलत्व-अपने विषय में श्रोताजनों को लगातार कौतूहल उत्पन्न करने वाले होना। 27. अद्भुतत्व-~पाश्चर्यकारक अद्भुत नवीनता-प्रदर्शक वचन होना / 28. अनतिविलम्बित्व-अतिविलम्ब से रहित धाराप्रवाही बोलना। 29. विभ्रम, विक्षेप--किलिकिञ्चितादि विमुक्तत्व-मन की भ्रान्ति, विक्षेप और रोष, भयादि से रहित होना। 30. अनेक जातिसंश्रयाद्विचित्रत्व--अनेक प्रकार से वर्णनीय वस्तु-स्वरूप के वर्णन करने वाले वचन होना। 31. माहितविशेषत्व सामान्य वचनों से कुछ विशेषता-युक्त वचन होना। 32. साकारत्व-पृथक्-पृथक् वर्ण, पद, वाक्य के प्राकार से युक्त वचन होना। 33. सत्वपरिगृहीतत्व-साहस से परिपूर्ण वचन होना / 34. अपरिखेदित्व-खेद-खिन्नता से रहित वचन होना। 35. अव्युच्छेदित्व--विवक्षित अर्थ की सम्यक् सिद्धि करने वाले वचन होना / बोले जाने वाले वचन उक्त पैंतीस गुणों से युक्त होने चाहिए। २२३-कुथू णं अरहा पणत्तीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। दत्ते णं वासुदेवे पणतोसं धणई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। नंदणे णं बलदेवे पणतीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org