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________________ 92] [समवायाङ्गसूत्र खोणे चक्खुदंसणावरणे 6, खीणे अचक्खुदसणावरणे 7, खोणे ओहिदसणावरणे 8, खीणे केवलदसणावरणे 9, खोणे गिद्दा 10, खोणे णिहाणिद्दा 11, खोणे पयला 12, खीणे पयलापयला 13, खीणे थीणद्धी 14, खोणे सायावेयणिज्जे 15, खोणे असायावेयणिज्जे 16, खीणे दंसणमोहणिज्जे 17, खोणे चरित्तमोहणिज्जे 18, खोणे नेरइआउए 29, खोणे तिरिआउए 20, खीणे मणुस्साउए 21, खोणे देवाउए 22, खीणे उच्चागोए 23, खीणे नीयागोए 24, खीणे सुभणामे 25, खीणे असुभणामे 26, खीणे दाणंतराए 27, खोणे लाभंतराए 28, खीणे भोगंतराए 29, खीणे उवभोगतराए 30, खीणे वीरिअंतराए 31 / सिद्धों के आदि गुण अर्थात सिद्धत्व पर्याय प्राप्त करने के प्रथम समय में होने वाले गुण इकत्तीस कहे गये हैं। जैसे--१ क्षीण आभिनिबोधिकज्ञानावरण, 2 क्षीणश्रुतज्ञानावरण, 3 क्षीणअवधिज्ञानावरण, 4 क्षीणमन:पर्यवज्ञानावरण, 5 क्षीणकेवलज्ञानावरण, 6 क्षीणचक्षुदर्शनावरण, 7 क्षीण अचक्षुदर्शनावरण, 8 क्षोण अवधिदर्शनावरण, 9 क्षीण केवलदर्शनावरण, 10 क्षीण निद्रा, 11 क्षीण निद्रानिद्रा, 12 क्षीण प्रचला, 13 क्षोण प्रचलाप्रचला, 14 क्षीणस्त्यानद्धि, 15 क्षीण सातावेदनीय. 16 क्षीण असातावेदनीय, 17 क्षीण दर्शनमोहनीय, 18 क्षीण चारित्रमोहनीय, 19 क्षीण नरकायु, 20 क्षीण तिर्यगायु, 21 क्षीण मनुष्यायु, 22 क्षीण देवायु, 23 क्षीण उच्चगोत्र, 24 क्षीण नीचगोत्र, 25 क्षीण शुभनाम, 26 क्षीण अशुभनाम, 27 क्षीण दानान्तराय, 28 क्षीण लाभान्तराय, 29 क्षीणभोगान्त राय, 30 क्षीण उपभोगान्तराय, और 31 क्षीण वीर्यान्तराय / २०६–मंदरे णं पव्वए धरणितले एक्कत्तीस जोयणसहस्साइं छच्चेव तेवोसे जोयणसए किंचि दसूणे परिक्खेवेणं पण्णत्ते। जया णं सूरिए सव्वबाहिरियं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं इहगयस्स मणुस्सस्स एक्कत्तीसाए जोयणसहस्सेहिं अट्ठहि अ एकत्तीसेहिं जोयणसएहि तीसाए सट्ठिभागे जोयणस्स सूरिए चक्खुप्कासं हव्वमागच्छइ / अभिवडिए णं मासे एक्कत्तीसं सातिरेगाई राइंदियाई राइंदियग्गेण पण्णत्ते / प्राइच्चे णं मासे एक्कत्तीसं राइंदियाई किचि विसेसूणाई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते। मन्दर पर्वत धरती-तल पर परिक्षेप (परिधि) की अपेक्षा कुछ कम इकत्तीस हजार छह सौ तेईस योजन कहा गया है / जब सूर्य सब से बाहरी मंडल में जाकर संचार करता है, तब इस भरतक्षेत्र-गत मनुष्य को इकत्तीस हजार आठ सौ इकत्तीस और एक योजन के साठ भागों में से तीस भाग (3183130) की दूरी से वह सूर्य दृष्टिगोचर होता है / अभिवधित मास में रात्रि-दिवस की गणना से कुछ अधिक इकत्तीस रात-दिन कहे गये हैं / सूर्यमास रात्रि-दिवस की गणना से कुछ विशेष हीन इकत्तीस रात-दिन का कहा गया है / २०७-इमोसे गं रयणप्पभाए पुढवीए प्रथेगइयाणं नेरइयाणं एकत्तीस पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता / अहे सत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एक्कत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता / असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एक्कत्तीस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु प्रत्थेगइयाणं देवाणं एक्कत्तीस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति इकत्तीस पल्योपम है / अधस्तन सातवीं पृथिवी में कितनेक नारकों की स्थिति इकत्तीस सागरोपम की है / कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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