________________ 80] [समवायानसूत्र के 6 भेद, त्रिमासिकी प्रारोपणा के 6 भेद और चतुर्मासिकी आरोपणा के 6 भेद जानना चाहिए / इस प्रकार चारों मासिकी प्रारोपणा के 24 भेद हो जाते हैं। 27 दिन-रात के दिये गये प्रायश्चित्तों को लघुमासिक प्रायश्चित्त कहते हैं / ऐसे डेढ़ मास के प्रायश्चित्त को लघु द्विमासिक प्रायश्चित्त कहते हैं / ऐसे लघु त्रिमासिक, लघु चतुर्मासिक प्रायश्चित्तों को उपघातिक आरोपणा कहते हैं / यही पच्चीसवीं आरोपणा है। इसे उद्घातिक ग्रारोपणा भी कहते हैं। पूरे मास भर के प्रायश्चित्त को गुरुमासिक कहा जाता है / इसके साथ अर्धपक्ष, पक्ष आदि के प्रायश्चित्तों के प्रारोपण करने को अनुपातिक प्रारोपण कहते हैं / इसे अनुद्घातिक मासिक प्रायश्चित्त भी कहा जाता है / यह छब्बीसवीं आरोपणा है। साधु ने जितने अपराध किये हैं, उन सब के प्रायश्चित्तों को एक साथ देने को कृत्स्ना अारोपणा कहते हैं / यह सत्ताईसवीं अारोपणा है / बहुत अधिक अपराध करनेवाले साधु को भी प्रायश्चित्तों को सम्मिलित करके छह मास के तपप्रायश्चित्त को अकृत्स्ना पारोपणा कहते हैं। यह अट्ठाईसवीं आरोपणा है / इसमें सभी छोटेमोटे प्रायश्चित्त सम्मिलित हो जाते हैं। कितना ही बड़ा अपराध किया हो, पर छह मास से अधिक तप का विधान नहीं है / १८४---भवसिद्धियाणं जीवाणं अत्थेइगइयाणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स अट्ठावीसं कम्मंसासंतकम्मा पण्णत्ता / तं जहा—सम्मत्तवेयणिज्ज मिच्छत्तवेयणिज्जं सम्मामिच्छत्तवेयणिज्ज, सोलस कसाया, णव णोकसाया / कितनेक भव्यसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों की सत्ता कही गई है। जैसे-सम्यक्त्व वेदनीय, मिथ्यात्ववेदनीय, सम्यग्मिथ्यात्व वेदनीय, सोलह कषाय और नौ नोकषाय / 185 -आभिणिबोहियाणाणे अट्ठावीसविहे पण्णत्ते / तं जहा-सोइंदियाप्रत्थावग्गहे 1, चक्खिदियअत्थावरगहे 2, घाणिदियअत्थावग्गहे 3, जिभिदियग्रत्थावग्गहे 4, फासिदियप्रत्थावग्गहे 5, णोइंदियनत्थावग्गहे 6, सोइंदियवंजणोग्गहे 7, घाणिदियवंजणोग्गहे 8, जिभिदियवंजणोवग्गहे 9, फासिदियवंजणोग्गहे 10, सोतिदियईहा 11, चक्खिदियईहा 12, घाणिदियईहा 13, जिभिदियईहा 14, फासिदियईहा 15 णोइंदियईहा 16, सोतिदियावाए 17, चक्खिदियावाए 18, घाणिदियावाए, 19, जिभिदियावाए 20, फासिदियावाए 21, गोइंदियावाए 22 / सोइंदियधारणा 23, चक्खिदियधारणा 24, घाणिदियधारणा 25, जिभिदियधारणा 26, फासिदियधारणा 27, गोइंदियधारणा 28 / प्राभिनिवोधिकज्ञान अट्ठाईस प्रकार का कहा गया है / जैसे-१ श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह, 2 चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह, 3 घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, 4 जिह्वन्द्रिय-अर्थावग्रह, 5 स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रह 6 नोइन्द्रिय-अर्थावग्रह, 7 श्रोत्रेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, 8 घ्राणेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, 9 जिह्वन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, 10 स्पर्शनेन्द्रिय-व्यंजनावग्रह, 11 श्रोत्रेन्द्रिय-ईहा, 12 चक्षुरिन्द्रिय-ईहा, 13 घ्राणेन्द्रिय-ईहा, 14 जिह्वन्द्रिय-ईहा, 15 स्पर्शनेन्द्रिय-ईहा, 16 नोइन्द्रिय-ईहा, 17 श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय, 18 चक्षुरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org