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________________ पंचविशतिस्थानक समवाय] [73 १६७--मल्लो णं अरहा पणवीसं धणुइं उड्ढे उच्चत्तेणं होत्था। सव्वे वि दीहवेयडपव्वया पणवीसं जोयणाणि उड्ढे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। पणवीसं पणवीसं गाउप्राणि उन्विद्वेणं पण्णता। दोच्चाए णं पुढवीए पणवीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। मल्ली अर्हन् पच्चीस धनुष ऊंचे थे। सभी दोघ वैताढय पर्वत पच्चीस धनुष ऊंचे कहे गये हैं / तथा वे पच्चीस कोश भूमि में गहरे कहे गये हैं। दूसरी पृथिवी में पच्चीस लाख नारकावास कहे गये हैं। १६८--आयारस्स णं भगवो सचूलिग्रायस्स पणवीसं अज्झयणा पण्णता, तं जहा--- सस्थपरिणा' लोगविजओ' सीओसणीअ सम्मत्तं / आवंति' धुय विमोह उवहाण सुयं महपरिण्णा // 1 // पिंडेसण'" सिज्जिरि'' आ२ भासज्झयणा' य वत्थ'४ पाएसा'५ / उग्गहपडिमा६ सत्तिक्कसत्तया१७-२3 भावण 24 विमुत्ती२५ // 2 // णिसीहज्झयणं पणुवीसइमं / चूलिका-सहित भगवद्-प्राचाराङ्ग सूत्र के पच्चीस अध्ययन कहे गये हैं। जैसे-१. शस्त्रपरिज्ञा, 2. लोकविजय, 3, शीतोष्णीय, 4. सम्यक्त्व, 5. यावन्ती, 6. धूत, 7. विमोह, 8. उपधानश्रुत, 9. महापरिज्ञा, 10. पिण्डैषणा, 11. शय्या, 12. ईर्या, 13, भाषाध्ययन, 14. वस्त्रैषणा, 15. पात्रैषणा, 16. अवग्रहप्रतिमा, 17-23 सप्तकक (17. स्थान, 18. निषीधिका, 19. उच्चारप्रस्रवण, 20. शब्द, 21. रूप, 22. परक्रिया, 23. अन्योन्य क्रिया) 24. भावना अध्ययन और 25. विमुक्ति अध्ययन / / 1-2 // अन्तिम विमुक्ति अध्ययन निशीथ अध्ययन सहित पच्चीसवां है। १६९-मिच्छादिदिविलिदिए णं अपज्जत्तए णं संकिलिट्ठपरिणामे णामस्स कम्मस्स पणवीस उत्तरपयडीओ णिबंधति-तिरियगतिनाम 1. विलिदियजातिनामं 2. अोरालियसरीरणाम 3. तेअगसरीरणामं 4, कम्मणसरीरनामं 5, हुंडगसंठाणनामं 6, पोरालियसरीरंगोवंगणामं 7, छेवट्ठसंघयणनामं 8, वण्णनामं 9, गंधनामं 10, रसनामं 11, फासनामं 12, तिरिआणुपुग्विनामं 13, अगुरुलहुनामं 14, उवधायनामं 15, तसनामं 16, बादरनामं 17, अपज्जत्तयनामं 18, पत्तेयसरीरनाम 19, अथिरनामं 20, असुभनाम 21, दुभगनाम 22, अणादेज्जनामं 23, अजसोकित्तिनामं 24, निम्माणनामं 25 / संक्लिष्ट परिणामवाले अपर्याप्तक मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय) जीव नामकर्म की पच्चीस उत्तर प्रकृतियों को बांधते हैं / जैसे-१. तिर्यग्गतिनाम, 2 विकलेन्द्रिय जातिनाम, 3. प्रौदारिकशरीरनाम, 4. तैजसशरीरनाम, 5. कार्मणशरीरनाम, 6. हंडकसंस्थान नाम, 7. औदारिकशरीराङ्गोपाङ्गनाम, 8. सेवार्तसंहनननाम, 9. वर्णनाम, 10. गन्धनाम, 11. रसनाम 12. स्पर्शनाम, 13. तिर्यंचानुपूर्वीनाम, 14. अगुरुलघुनाम, 15. उपघातनाम, 16. त्रसनाम, 17. बादरनाम, 18. अपर्याप्तकनाम, 19. प्रत्येकशरीरनाम, 28. अस्थिरनाम, 21. अशुभनाम, 22. दुर्भगनाम, 23. अनादेयनाम, 24. अयशस्कोत्तिनाम और 25, निर्माणनाम / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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