SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 68] [समवायाङ्गसूत्र पुन्वभवे एक्कारसंगिणो होत्था / तं जहा-अजित-सम्भव-अभिणंदण-सुमई जाव पासो बद्धमाणो य / उसभे णं अरहा कोसलिए चोद्दसपुग्वी होत्था। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में, इसी भारतवर्ष में, इसी अवपिणी में तेईस तीर्थकर जिनों को सूर्योदय में मुहूर्त में केवल-वर-ज्ञान और केवल-वर-दर्शन उत्पन्न हुए। जम्बूद्वीपनामक इसी द्वीप में गोकाल के तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में ग्यारह अंगश्रुत के धारी थे। जैसे-अजित, सभव, अभिनन्दन, सुमति यावत् पार्श्वनाथ, महावीर / कौशलिक ऋषभ अर्हत् चतुर्दशपूर्वी थे। १५७--जम्बुद्दीवे णं दोवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थंकरा पुत्वभवे मंडलियरायाणो होत्था / तं जहा-अजित-सम्भव-अभिणंदण जाव पासो वद्धमाणो य / उसभे णं अरहा कोसलिए पुवभवे चक्कवट्टी होत्था। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में इस अवसर्पिणी काल के तेईस तीर्थंकर पूर्वभव में मांडलिक राजा थे। जैसे--अजित, संभव, अभिनन्दन यावत् पार्श्वनाथ तथा वर्धमान / कौशलिक ऋषभ अर्हत् पूर्वभव में चक्रवर्ती थे। १५८-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए प्रथेगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। अहे सत्तमाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेवीसं सागरोक्माई ठिई पण्णत्ता / असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेवीसं पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / सोहम्मीसाणाणं देवाणं अत्थेगइयाणं तेवीसं पलिप्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता / इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है। अधस्तन सातवीं पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति तेईस सागरोपम कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है / सौधर्म ईशान कल्प में कितनेक देवों की स्थिति तेईस पल्योपम कही गई है। १५९-हेटिममज्झिमगेविज्जाणं देवाणं जहण्णणं तेवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता / जे देवा हेछिमगेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तेवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता / ते णं देवा तेवीसाए अद्धमासाणं आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा / तेसि णं देवाणं तेवीसाए वाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जई। संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे तेवीसाए भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति / अधस्तन-मध्यमवेयक के देवों की जघन्य स्थिति तेईस सागरोपम कही गई है / जो देव अधस्तन ग्रैवेयव विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागरोपम कही गई है / वे देव तेईस अर्धमासों (साढ़े ग्यारह मासों) के बाद प्रान-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों के तेईस हजार वर्षों के बाद ग्राहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्य सिद्धिक जीव ऐसे हैं, जो तेईस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। ॥त्रयोविशतिस्थानक समवाय समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy