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________________ [समवायाङ्गसूत्र दृष्टिवाद नामक बारहवें अंग में बाईस सूत्र स्वसमयसूत्रपरिपाटी से छिन्न-छेदनयिक हैं। बाईस सूत्र प्राजीविकसूत्रपरिपाटी से अच्छिन्न-छेदनयिक हैं / बाईस सूत्र त्रैराशिकसूत्रपरिपाटी से नयत्रिक-सम्बन्धी हैं। बाईस सूत्र चतुष्कनयिक हैं जो चार नयों की अपेक्षा से कहे गये हैं। विवेचन-जो नय छिन्न सूत्र को छेद या भेद से स्वीकार करता है, अर्थात् दूसरे श्लोकादि की अपेक्षा नहीं रखता है, वह छेदनय स्थित कहलाता है। जैसे 'धम्मो मंगलमुक्किट्ठ' इत्यादि श्लोक अपने अर्थ को प्रकट करने के लिए अन्य श्लोक को अपेक्षा नहीं रखता / इसी प्रकार जो सूत्र छिन्नछेदनय वाले होते हैं उन्हें छिन्नछेदनयिक कहा जाता है। दृष्टिवाद अंग में ऐसे बाईस सूत्र हैं जो जिनमत की परिपाटी या पद्धति से निरूपण किये हैं / जो नय अच्छिन्न (अभिन्न) सूत्र की छेद से अपेक्षा रखता है, वह अच्छिन्नछेदनक कहलाता है अर्थात् द्वितीय आदि श्लोकों की अपेक्षा रखता है / ऐसे बाईस सूत्र प्राजीविक गोशालक के मत की परिपाटी से कहे गये हैं। जो सूत्र द्रव्यास्तिक, पर्यायास्तिक और उभयास्तिक इन तीन नयों की अपेक्षा से कहे गये हैं, वे त्रिकनयिक या त्रैराशिक मत को परिपाटी से कहे गये हैं। जो सुत्र संग्रह, व्यवहार, ऋजु-सूत्र और शब्दादित्रक, इन चार को अपेक्षा से कहे गये हैं वे चतुष्कन यिक कहे जाते हैं। वे स्वसमय से सम्बद्ध हैं। १५२--वावीसविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-कालवण्णपरिणामे, नीलवण्णपरिणामे, लोहियवण्णपरिणामे, हलिवण्णपरिणामे, सुविकल्लवण्णपरिणामे, सुन्भिगंधपरिणामे, दुखिभगंधपरिणामे, तित्तरसपरिणामे, कडुयरसपरिणामे, कसायरसपरिणामे, अंविलरसपरिणामे, महुररसपरिणामे, कक्खडफासपरिणामे, मउयफासपरिणामे, गुरुफासपरिणामे, लहफासपरिणामे, सोतफासपरिणामे, उसिणफासपरिणामे, णिद्धफासपरिणामे, लुक्खफासपरिणामे, अगुरुलहुफासपरिणामे, गुरुलहुफासपरिणामे। पुद्गल के परिणाम (धर्म) बाईस प्रकार के कहे गये हैं। जैसे—१. कृष्णवर्णपरिणाम 2. नीलवर्णपरिणाम, 3. लोहितवर्णपरिणाम, 4. हारिद्रवर्णपरिणाम, 5. शुक्लवर्णपरिणाम, 6. सरभिगन्धपरिणाम, 7. दरभिगन्धपरिणाम, 8. तिक्तरसपरिणाम, 9. कटकरसपरिणाम 10. कषायरसपरिणाम, 11. आम्लरसपरिणाम, 12. मधुररसपरिणाम, 13. कर्कशस्पर्श परिणाम, 14. मृदुस्पर्शपरिणाम, 15. गुरुस्पर्शपरिणाम, 16. लघुस्पर्शपरिणाम, 17. शीतस्पर्शपरिणाम, 18. उष्ण स्पर्शपरिणाम, 19. स्निग्धस्पर्शपरिणाम 20. रूक्षस्पर्शपरिणाम, 21. अगुरुल घुस्पर्शपरिणाम और 22. गुरुलघुस्पर्शपरिणाम / 153-- इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं वावीसं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। छट्ठीए पुढवीए उक्कोसेणं वावोसं सागरोवमाई ठिई पग्णता / अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहणणं वावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता / असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं वावीस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं वावीस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। इस रत्नप्रभा पृथिवी में कितनेक नारकियों की स्थिति बाईस पल्योपम कही गई है / छठी तमःप्रभा पृथिवी में नारकियों की उत्कृष्ट स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है / अधस्तन सातवीं तमस्तमा पृथिवी में कितनेक नारकियों को जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम कही गई है। कितनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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